Atharva Kulkarni   (अंश)
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Joined 8 January 2018


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1 APR 2022 AT 19:17

#दिलकीपुकार

ढलती हुई शाम हो तुम,
सुबह की पहली किरन हो तुम,
मंजिल दिखानेवाले मार्गदर्शक हो तुम,
खुशियों से भरी नदी हो तुम,
नन्ही सी जान की आत्मा हो तुम,
या शायद मेरी खोई हुई छवि हो तुम।

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14 NOV 2020 AT 21:56

#दिलकीपुकार
दिए जलाइए, पटाखे नहीं।
खुशियां फैलाइए, धुआ नहीं।

बाकी आप समझदार है...

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13 OCT 2020 AT 18:20

#दिलकीपुकार

यादों से यादें जुड़ने लगी
महफ़िल में ये शाम गुजरने लगी।
तस्वीरों में मुझे तेरी छवि दिखने लगी,
मंज़िल-ए-खुदा मैं उसमे हमारी खुशियां तराशने लगी।

-(एक लड़की की कहानी, अंश की ज़ुबानी)

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26 AUG 2020 AT 14:46

He was online but he waited for her.

She was online but she waited for him.

None of them initiated, and the lonely night slowly passed.

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10 JAN 2022 AT 22:29

#दिलकीपुकार

वो लोग ही थे जो हैवान थे,
जिंदगी तो फिर भी नादान थी।
तकदीर का क्या कुसूर,
जब इंसानियत ही नाकाम थी।

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4 JAN 2021 AT 18:18

#दिलकीपुकार
"सुनो, मेरी बात सुनो"
"क्या सुनूं?"
"वहीं जो तुम्हे सुनना है।"
"क्या सुनना है मुझे?"
"वहीं जो मुझे कहना है"
"क्या कहना है तुम्हे?"
"अपनी बात.."
"हां कहो ना, आधी मत छोड़ो"
"मुझे ये कहना है कि तुम..."
"अंश! अंश! अरे कहा खो गए थे भाई कितनी आवाज़ दी तुझे ।
"मुझे?",मैंने चौकते हुए कहा।

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29 SEP 2020 AT 11:41

#दिलकीपुकार

न कोई शिकवे है, न कोई बंदिशे
बस है कुछ नगमों की सिफारिशें
ऐसे ही तुम साथ रहो,
तो पूरी हो जाए हमारे दिल की ख्वाहिशें ।

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6 SEP 2020 AT 22:28

#दिलकीपुकार
क्यूं है ये रुसवाई?
मैं हूं ना तुम्हारी यूं परछाई
ना जी तुम ना समझोगी हमारी ये तन्हाई।
तो भर दो झोली में थोड़ी अच्छाई।
कहा जी, हमारी ज़िन्दगी है डगमगाई।
तो कहा गई तुम्हारी वह हरजाई ?
उन्होंने ली है अब अंगड़ाई।
तो क्या ऐसे ही सहोगे अपनी कुटवाई?
ओ ना जी अब झोली में होगी अगुवाई और..
और ?
और लाएंगे खुशियों की भरमाई।
कैसे?
क्यूं, तुम हो ना मेरी परछाई ...

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22 JUL 2020 AT 18:12

#दिलकीपुकार

काश तुम सूरज होती और मै सूर्य की किरण,
काश तुम दरिया होती और मै समंदर की लहर

काश तुम पर्वत होती और मै बेहती नदी का झर्रा,
काश तुम मेरी हमसफ़र होती और मै तुम्हारा हमराही

पर ना तुम हमसफ़र और ना मै किसी समंदर की लहर
तुम हो मेरी पूरी दुनिया और मै खोया हुआ छोटा शहर।

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21 JUL 2020 AT 22:34

#दिलकीपुकार
हवा
यूंही हल्के से तुम चली आती हो
नज़ाकत से गालों पर अपनी छाप छोड़ जाती हो।
सुगंध ऐसी शायद इत्र भी शर्मा जाए।
आज़ादी के नए रंगो से परिचय कराती हो,
अपने मोहब्बत के धागों से पता नहीं कब हमे बांध लेती हो,
पराग जैसे कण कण को अपना साथी बना लेती हो।
तुम ही तो हो जो बात बात पर हमे गले लेती हो।
जहा भी जाओ हमेशा खुशी साथ लिए चलती हो।

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