थोड़े
बहुत
ईश्वर
तो
हम
सब
है-
More of a reader.
कितना कुछ हो सकते हो तुम!
कितने सारे किरदार
हो सकते है तुम्हारे
मगर सिर्फ इसी पल–
ठीक इसी पल में
क्योंकि असल जिंदगी में हम बंधे है
एक वक्त पर एक ही शक्ल में बंधे होने,
एक ही किरदार में कैद होने के नियम से !
-
अम्मा फेमिनिज्म नहीं जानती थी,
स्ट्रांग इंडिपेंडेंट वुमन क्या बला है ,
अम्मा ये भी नहीं जानती थी
अम्मा ने तो होश संभालने से लेकर आज तक,
औरत की जिंदगी , आदमी से शुरू होकर
आदमी तक ही खतम होते देखी है,
अम्मा के लिए,
उनके हिस्से की दुआएं किसी ने मांगी नहीं कभी शायद, इसलिए अम्मा ने औरत के हिस्से की दुआएं मांगनी कभी सीखी ही नहीं !-
.....— % &एक रोज़ जब हम आज से बहुत दूर होंगे~
अपने वजूद के मायने ढूंढते
अगली सांस तक लेने के लिए वजह ढूंढते हम,
इक मोड़ पर आकर
जब इक नजर ताउम्र चली
जिंदगी और जीने से अपनी जद्दोजहद पर डालेंगे
तो पाएंगे , जीना शायद इतना भी बेमतलब न था
जितना हमने उसे बनाए रखा
अपने वज़ूद का मतलब खोजते
किसी रोज़, जब एक अरसे से मुड़ी हुई कागज की पर्ची
पर , लगभग स्याही छोड़ चुके अक्षरों में से ढूंढ
पुराने कीपैड में , नंबर डायल कर रहे होंगे
तो लगेगा , की मेरा इतना कर पाना भर भी काफी था किसी के लिए
यहां तक आना बेमकसद भी नहीं था
जीने के लिए किसी बहुत बड़ी वजह
की शायद जरूरत भी नहीं है!— % &-
सब निश्चित होना,
घुटनभरा है मेरे लिए—
अंततः अनिश्चित्ताओं में ही मुझे
सांस लेने की संभावनाएं
दिखाई पड़ती हैं...-