Astha Srivastava   (Astha Srivastava)
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कलम वाली बाई!!
Joined 21 November 2017


कलम वाली बाई!!
Joined 21 November 2017
21 SEP 2021 AT 23:32

ना कोई डोर है,
ना तुम पतंग,
ना कोई काबु है मेरा तुझपे,
ना तू बेसब्र
हर्फ दर हर्फ सम्भली हूँ मैं,
थामना तो चाहती भी हूँ,
मगर कहने से डरती भी हूँ मैं,
तू जो सामने से थामे डोर मेरी,
खीचे मुझे यु पतंग सा,
लपीटी जाऊँ तेरी बाँहों में मैं,
जैसे रेशमी धागे की चरखी की तरह,
यूं तो आज़ाद पंछी सी हूँ मैं,
मगर कैद कर ले तू मुझे अपनी निगाहों में कुछ इस तरह ,
बस गिरा ना देना मुझे, यूं किसी पलक पर पड़े आँसू की तरह |

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5 MAY 2020 AT 16:30

वक़्त नहीं जज़्बात बदले हैं,
मैं नहीं हालात बदले हैं।।

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28 JAN 2020 AT 23:03

लोग कभी अच्छे नहीं होते
वादे कभी सच्चे नहीं होते

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13 DEC 2019 AT 18:48

कुछ अरसे हो गये थे मुझे लीखें हुए,
तो आज सोचा तुम्हारी तस्वीर ही उतार दूं।
क्या है ताबीर तुम्हारी ये आज सबमे बतला दूं।
हमारे मरासीम के किससे आज सारी दुनिया को सुना दूं।
की कितनी खूबसूरत हो तुम ये आज तुमको बतला दूं।
की मेरी खाना-बदोश ज़िंदगी की इख्तियार हो तुम,
आओ अब इस फ़र्श से नरम दिल का क़हर तुम्हारे ज़ेहन में उतार दूं।
की पश्बन हूँ मैं तेरे लिए ये आज तुमको मलूमात हो जाए
और मैं अपने जिस्म के फ़ितूर को तेरे लहू में उतार दूं।
कुछ अरसे हो गये हैं कुछ लीखें हुए,
आओ आज तुम्हारे एहसास को ,
एक बार फिर अपने लबों-लबाब में उतार लूँ।

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15 OCT 2019 AT 19:11

किससे कहनियां तो सब ले जायेंगे
तो तुम एक काम करो-
मेरा दिल ले जाओ,
मेरे जज़्बात ले जाओ,
मेरे वो खोए अल्फाज़ ले जाओ,
मेरी पुरी तुम कायनात भी ले जाओ,
बदले में बस अपनी-मोहब्बत दे जाओ ||
मोहब्बत दे जाओ ||

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14 OCT 2019 AT 23:27

आओ आज फिर 90's के किड्स बनते है
सिर्फ काजल और लीपबाम में कॉलेज चलते हैं ||

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3 OCT 2019 AT 23:47

क्या तुमको मालूम है,
यहाँ कोई अपना नहीं है,
सब बस मतलब के यार है,
वक़्त पर सब बेकार है ||

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3 OCT 2019 AT 1:49

सच कहूँ तुझे, या हकीकत कह जाऊँ
तेरे जिस्म में, मैं फिर से सिमट जाऊँ
दिल करता है तुझे होठो से लगाऊँ
खुशबू में तेरी, मैं पिघलती चली जाऊँ
जी करती है सिगरेट को फिर से गले लगाऊँ ||


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3 OCT 2019 AT 1:04

थाम लो कोई
हाथ, के साथ
जज़्बातो को भी
संभाल, लो कोई ||

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22 SEP 2019 AT 0:06

जैसे-जैसे शाम गहराने लगती है ,
मुझे घर की याद सताने लगती है ||
दिन तो कट जाता है यूँही ,
मगर रात कुछ समझ नहीं आती है |
जैसे ही बिस्तर पर लेटो ,
माँ की गोद सताने लगती है |
वो माँ के हाथों का खाना ,
और पापा की डाट उल्झाने लगती है |
सपने तो नहीं आते अब ,
लेकिन, खुली आँखों में ,,
उनकी तस्वीर दिखाने लगती है |
जैसे-जैसे शाम गहराने लगती है ,
मुझे घर की याद सताने लगती है ||

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