astha mishra   (©आस्था Saroj)
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Joined 10 May 2020


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18 FEB AT 21:07

जीवन कभी नहीं पूछता
कि...


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15 FEB AT 18:51

इच्छाएं
कभी खत्म नहीं होती
इच्छाएं तब भी कहीं न कहीं
बची रह जाती हैं ब्रम्हांड में
जब हम भी न रह जाएं,
ये जन्म से लेकर
मृत्यु तक हर समय
कुछ न कुछ रह रहती है हैं,
अधिकांशतः ये
अधूरी रह जाने को
शापित हैं,
एक जीवनकाल में
समस्त इच्छाएं पूर्ण होना
उतना ही कठिन है
जितना दुरूह बादल के
शास्वत पर्वत बनाना...
इच्छाएं हैं तभी तो दुखों
को जीवन मिला हुआ है।
कोई भी इच्छा न रहे इस बात कि अभिलाषा
भी इच्छा ही तो है...
इच्छाएं रक्तबीज सी उगती रहती हैं क्योंकि
इच्छाएं वो अश्वत्थामा हैं
जो जीवित रह जाने
को अभिशप्त हैं...तब भी जब जीवन न रह जाये...

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15 FEB AT 18:33

ये संसार समाप्तियों का प्रयोजन है,
एक दिन सब अंत
हो जाने का रहस्यमयी उपक्रम है,
इस जग को समाप्ति
हेतु ही आरम्भ मिला है,
एक दिन सब खत्म हो जाना
यहाँ कि नियति में घुला है,
कितने भी जतन करो
होती है यहाँ रोज
समाप्ति रिश्तों में बसे इंसानों की,
समाप्ति आत्मा से ढके शरीर की,
समाप्ति कर्मों में लिप्त भावों की,
समाप्ति सुंदर सपनों की,
समाप्ति भौतिकताओं की,
समाप्ति विश्वास में छुपे आस की,
समाप्ति यौवन के अहसास की,
समाप्ति स्नेह के प्रयास की,
समाप्ति उन रिश्तों की जिन्होंने तुम्हें सुख दिया,
ये संसार प्रारम्भ हुआ कि एक दिन
इसे समाप्ति को जन्म देना है,
कुछ भी कभी शाष्वत नहीं रह जायेगा,
यहाँ बस नादान अतिथि सा रहना है,
सब समाप्त हो जाएगा सिवा इच्छाओं के
क्योंकि इच्छाएं कभी नष्ट नहीं हो पातीं
कहीं न कहीं ब्रम्हांड में बची रह जाती हैं
कोई इच्छा न रह जाये
इस बात कि आकांक्षा ही इच्छा बनकर
शेष रह जाती है
पर एक दिन वो भी छूट जाती हैं कि समय निर्मम है उसे समाप्तियों का मनोरंजन प्रिय है।

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25 JAN AT 23:46

माँ तुम थीं तो मैं था
अब मैं नहीं हूं
कोई और है,
जिसे तुम्हारे बिना
जीना आता नहीं,
और मरना तुमने सिखाया ही नहीं,
माँ तुम थीं
तो मैं सच में जीवंत सा मैं ही था
अब मैं कोई और हूँ,
तुम थीं तो जिंदगी में
जीवन था,
जो हर पल में उत्साह था,
दुःख में भी कि कोई हो
न हो कम से कम तुम तो हो बेशर्त,
अथाह परवाह और प्रेम के साथ तुम हो,
ये सोच के सदा खुश था,
तुम थीं तो मैं जी भर जीता था,
बेहद निश्चिन्त सुकून था,
अब जो मैं हूँ तुम्हारे बिना माँ
वो जो जी रहा है कि
बस साँस आ रही और
बस इसलिए
कि तुम चाहतीं थीं मेरी लम्बी उम्र
और
मेरी सलामती हमेशा से...

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25 JAN AT 23:41

कहाँ कुछ लिखने का
मन होता है कि
जिसने मुझे लिखा था
ज़िंदगी के फलक पर
अब वो ही मुझे
छोड़कर कर कुछ
यूं चली गयी के
तबसे जीने कि वजहें भी
नगण्य लगती हैं,
मैं जहाँ जहाँ भी रहता हूँ
मेरी माँ कि आहटें सिर्फ
मुझे सुनाई पड़ती हैं,
पर अब वो कहाँ प्रेम का सागर लिए
कभी मिल सकती हैं,
उनकी अब शास्वत कमी से अधीर ये
मन अब उन्हें असफल सा
खोजता है पर न पाता है और अब कहाँ कुछ
लिखने का मन होता है।

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11 JUN 2023 AT 0:20

खुशी के ठंडे फाहे बनाकर
दुःख के बदन पर रखना,
और फिर से जीने के
नए सलीके में वक़्त कैसा भी हो
बेवजह ही मुस्कुराना।।

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8 JUN 2023 AT 15:20

उन दोषों का क्या करें,
जो उसे छूकर भी नहीं गुज़रे
पर सबने जाने किस चश्मे
से उसमें वो दोष उगा दिए,
कुछ के जीने का सलीका भी है
कि कमियां अन्वेषक बन जाएं उसके,
अफसोस होता है उन पर
कि ज़िन्दगी के बेहतरीन पल
उसे गलत परिभाषित करने में
जो लोगों ने जाया किये,
हंसी आती है उन पर भी
जो खुद निर्दोष नहीं
पर खुद ईश्वर बनकर
अस्तित्व हीन दोषों कि उसे
सजा सुना गए।।

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8 JUN 2023 AT 15:01

हर तरह के
फरेब धुल जाते हैं,
बस इस विह्वल हृदय को
उदारता सीखने दो,
मैं सुखों के भरम में
अब और नहीं उलझना चाहता
मुझे दुःखों को स्वीकार करने दो,
जो है जैसा है
महसूस होगा सब सही है,
बस गलत हालातों में भी
सही लम्हों को ढूंढने दो,
उम्मीदें नहीं टूटेंगी
बस उनके लौ कि रोशनी
सिर्फ खुद से होने दो,
बीती बातों का
क्या शोक
वो जो बीत गया उसे
अतीत कि पीठ पर ही रहने दो।
बस तुम ज़िन्दगी को हल्के होकर जीने दो।।

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6 JUN 2023 AT 23:27

धूप के अंधियारे,
रात के उजाले,
पंखुड़ियों से घाव,
काँटों से कोमलता,
खुशी के आँसूं,
गम कि हँसी,
अवित्ति में राजशाही,
समृद्धि में भी अभाव,
छोटी सी घटना,
अंतहीन प्रभाव,
दुख कि क्यारियों में
उगे सुख कि दुर्लभ दूब,
आधिक्य में अल्पता तो
कभी फकीरी में सुखद पल खूब,
न कुछ निश्चित न कोई ज्ञानी
मंशा इसकी कुछ भी ज्ञात न कहीं,
ज़िन्दगी कल में तो है ही नहीं,
जो जीना है सिर्फ आज ही जीना,
छोड़ो कल क्या हुआ क्या होगा,
आज धूप खिली रात आयी
बस इतनी खुशी ही बहुत कुछ।।

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29 APR 2023 AT 23:57

जाने कितनी रिहाईयां बाकी हैं,
कहीं से मुक्त होना तो कहीं
से पूरी तरह विलग होना बाकी है,
कुछ खत्म करना तो कुछ
अन्तस् में मर जाना बाकी है,
कुछ जो कोई जान नहीं सका
वो अनबहे आसुंओं का बहना बाकी है,
कहीं से चले जाना तो कहीं फिर
वापस लौट के न आना बाकी है,
कुछ यादों से पीछा छुड़ाना तो
कुछ यादों को हमेशा के लिये
भूल जाना बाकी है,
कहीं खुद के ज्यादा होने को
लुप्त करना,
तो कहीं न होना ही बाकी है,
कहीं टूटे लम्हों के कुछ अधूरे शोक तो
कहीं अच्छे लम्हों कि कमी का दुख मनाना बाकी है,
कहीं बातों का बेवजह शूल बनना
तो कहीं दिल का फिर से छलनी होना बाकी है,
कहीं सब करके भी हार जाना तो
कहीं हार कर सब कुछ खुद पर हंसना बाकी है,
कहीं भावों के निस्पंदन में थक जाना तो
कहीं फिर से अभी और गलत समझा जाना बाकी है,
कहीं बारिश कि आड़ में खुलेआम रोना तो
कहीं छुप छुप के तकिए पर बरसात करना बाकी है,
अभी तो ज़िन्दगी ने शुरू भर किया है
अभी तो सितमों कि दीवाली आना बाकी है,
जी लिये सारे सुखों के भ्रम अब तो
दुःखों के साथ जीना भर बाकी है,
कोई उम्र घट सकती तो बस यहाँ से
अब हमेशा के लिये चले जाना बाकी है।।

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