वो दुबली सी काया सारा जहां जिसमें समाया...
धैर्य धरा सा गगन सी विशालता
गहराई सागर सी आँचल की छाया
सहकर हर दर्द ये जहां बनाया
ईश्वर ने मानव इंशा तुमने बनाया
चाहत है न कुछ सिर्फ त्याग की भावना
सर्वोत्तम कृति हो ईश्वर की
क्या फुरसत में बनाया
तुम कलकल बहती जाती
हो मुश्किल कितनी भी फिर भी बढ़ती जाती
क्षमा कर अपराध तक फिर वही प्यार दिखाया
भूलकर हर घाव मुझे मरहम लगाया
हर दर्द सहकर मुझे जीना सिखाया
मुश्किलों से लड़ना वक् पे चलना सिखाया
सम्हलना उठना दौड़ना सिखाया
वो दुबली सी काया जिसने मुझे इन्सान बनाया......
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