क्या क्या लिखूं?
कब तक लिखूं?
अब क्यूं लिखूं?
चलो सच ही लिख दूं,
अन्धकार, अकेलापन, प्यार - इज़हार, और जीवन,
ये सब न रास आते हैं मुझको जब भी मैं सोचूं कि लिख लूं अब।
मोह भंग जैसा प्रतीत होता, है पर अब भी कुछ तो मन में जो हर पल
कहता कि लिख भी लूं, कुछ कह भी लूं पर क्या लिखूं? क्या ही लिखूं?
तलाशती हूं कुछ नवीन शब्द मैं हर घड़ी हर रोज अब,
नाराज से लगते हैं मुझको हर वो शब्द जो अब तक न मिले।
फिर सोचती हूं मैं बन कर पंछी उड़ जाऊं ऊंचा अबकी बारी
चीं चीं करूं और खोज लूं मैं हर वो शब्द जो दुबके हैं कहीं।।
-