तेरी मनमर्जियों को अपना कर उन्हें वजूद बना दीया मैंने अपनी जिंदगी का,
तुने भी क्या खुब नवाजा इश्क़ को मेरे कभी बर्बादियों से कभी बेवफाईयों से।
पहरेदार "होश" मेरा अब दहलीज़ पर खड़े तेरे जज़्बातों को इजाज़त नहीं देता भीतर आने की हरगिज़...
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वो खुशमिज़ाज समझते हैं किरदार मेरा,
मेरी बेबाक मुस्कुराहटें मैंने सूद समेत लौटा लाई है...-
मस्तिष्क और ह्रदय के द्वंद्व में सारथी अगर जिम्मेंदारियां हो,
तो आकांक्षाएं अक्सर युद्ध हार जाती हैं...-
किस्से काहानियों में तुमने अपनी सभी सुखद-सरल बताए हैं,
तुम वो कीरदार बताओ मुझको जीसे लिख न पाए इन पन्नो पर संक्षिप्त...-
सर्द रातों मे कोलाहल जब कुछ कम-सा हो,
तुम कस-कर भर लेना अपनी आगोश में मुझको...
मैं स्पष्ट कर दुंगी चाय के कप से उठे धूए की तरह तुम्हारी बोझिल भ्रांतियों को...-
रंजिशे जज्बतो से है खुद-के ही,
कोई जाम कहा कभी एहसासो को सुन्न कर पाया हैं...-
सब्र कर थोडा ऐ दील-ए-पाक,
न गौर कर शीशों पर इतना ये अक्स दिखाते है महज इरादे नहीं...-
जरूरी नहीं अंजाम तक लाना हर बार अनुराग को,
कुछ फुल स्वीकारे जाते है बे-सबब यूं ही...-
बेचैन कर रही हो तुम्हें इस शहर की रोशनी अगर,
मैं चाँद को भी भर लुँगी आग़ोश में अपनी अमावस्या की तरह।-
रक्तपात,कलह, द्वंद्व हारेगा जब अमन से,
केवल संपन्नता की मनोकामना से परे जब बुद्ध-सा एक दीप जलेगा भीतर स्नेह का तब लौटेंगे राम और प्रकट होगी वरदा मंथन से फीर एक बार...-