Asit Shukla   (आज़)
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Joined 8 October 2018


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Joined 8 October 2018
2 OCT 2023 AT 0:51

रात से रिश्ता अजब है, अरमाँ ज़ुलस्ते है सन्नाटे में फिर भी बाज नही आते ।
दिन की कड़ी धुप में भी पकते जलते हुए भी ये सभी को रास नही आते ।।

दिन और रात के मिलन को क्या, क्यों और किन अल्फाज़ो में बांधे हम?!
है एक दूसरे से फिर भी श्याम और सुबह के अलावा कभी मिल नही पाते ।।

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30 SEP 2023 AT 16:17

ज़हर का कुछ तो
ऐसा ही हिसाब है
मरने के लिए कम कम
तो जीने के लिए हरदम
पीना पड़ता है

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5 SEP 2023 AT 0:31

मुश्किल तो है ये फांसला मिटा पाना जरूरतों और हसरतों के बीच का
मुश्किल तो है ये हादसा मिटा पाना सपनो और एहसासों के बीच का
चलो कर लिया यकीं की नही है कोई भी फर्क कहीं भी
और सींच रही है जरूरते हसरतों को और खींच रहे सपनो को एहसास
फिर भी मुश्किल है ये की कट जाए ये वख्त गहराइयों के बीच का

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18 AUG 2023 AT 0:10

चलो बाकी बात भले ही बाकी रही
ये कहानी आज यही तक अधूरी रही

पुरा करने की कोई जरूरत भी नही
कुछ कहानिया अधूरी तो अधूरी ही सही

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2 AUG 2023 AT 0:30

सवेरे उड़ने वाले पंछी श्याम को वापिस आते है जरूर
लेकिन कुछ कहानियों में बदलाव ही है जीवन का दस्तूर

जी चाहे तो कैद कर लेना हर एक इन लम्हो को
मन के कोई कौने से, ना जाने कब कोई तूफा उठे
पीछे पीछे बस्ती उजड़े, ख़ाबों के मकां जले
हो सके की सरपे चढ़ा हुआ उतर जाए फितूर

फिर किसी दिन ठंडी रातों में हाथ में अल्हाव लिए
कुछ भूली बिसरी यादों के घाव को गर्म करते हुए
सोचोगे बेचैन निगाह से की जो गुजरा वो क्यों गुजरा
और हो सके तो कोई वो मुस्कुराहट लौटा दे हुजूर

रूबरू हो जाओ की झूठी है ये शान-ओ-शौकत गुरुर
जो बिता वो बित ही गया जरूरी नही की लौट आये हुजूर

- आज

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8 FEB 2023 AT 8:31

जिंदगी में तेरे से अभी थका नहीं,

तु अगर थक जाये तो बताना मुझे।

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5 SEP 2022 AT 23:02

कहती है मुझे जिन्दगी
कि बात वो सूनी गई पूरी
जिसे कहने का इरादा ना था
फिर रह गई कुछ् बात अधूरी
जिसका इरादा पूरा था

अब क्या और् क्यो करें बंदगी ?
नुमाइशो का बरगद भरा ना था
रह गए रेशमी ख्वाब, कंकाल से
मृगतृष्णा थी वो, किनारा ना था

आज मांग रहा हूँ हिसाब कि क्यों बिता जो बिता ?!
तो मुस्कुराके कहती है जिन्दगी
बात रही थी वो अधूरी, ऐसा मैंने कहा ना था
ठोडा ठहरने पे सुन पाते समंदर कि लहरो को
किनारा था बस पास में, तूने कभी सुना ना था

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20 JUL 2022 AT 23:16

आसमां मे है बादल हि बादल
चकोर पूछ्ता है मेरा चाँद कहा है?!

मृत्यु पर भी ना मिटती हस्तरेखा,
पुछती है मेरा भाग्य कहा है ?!

हुनरमंद गोताखोर बनगया हर कोई
लेकिन समंदर मे अब मोती कहाँ है?!

ठण्ड कि अँधेरी रात मे पूछ रहा हूँ अब में
ए रात बता मेरे ख्वाब कहाँ है ?!

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20 JUL 2022 AT 6:51

सच और झूठ के बीच का फर्क खोजना
बहुत फैंसले रुके हुए है इस राह पे
जैसे पंचवर्षीय और मनरेगा योजना
बहुत से अरमान है इस राह पे

बहुत वादे जो किये गए लिखें गए
बहुत ख्वाब जो संजोये गए
सालो से चली आ रही घटनी को सोचना
बहुत् मिलेंगे मरे हिरन, मृगजल् कि आस मे

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17 JUL 2022 AT 20:01



वो करते रहे बिन सिर पाँव कि बातें
हम भी ख़ुशी ख़ुशी दिल बहलाते गए

खकिश्तर् मे गुलाब मुमकिन नहीं
फिर भी हम अरमानो का बाग सजाते गए

मज़ा लूंटते रहे तराजू उसकी और झुकने का
हम ऊपर जाने का मज़ा पाते गए

अगर है ये एक धोखा तो खाए हम बार बार
एक दफा भी ना सोचे
कि, "ये हम किसकी बातों मे आते गए?"

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