मैं खामियों से भरी एक किताब हूं, तुलु से पहले ही गुरूब हो गया वो माहताब हूं दिल बहलाने के लिए सारा जहां है मगर, मैं खुद से ही आबाद हूं मैं खुद में ही शादाब हूं।
आशिक फकत अपनी महबूबा को बुरा या बेवफा कहता है सारे जहां की औरतों से उसका कोई ताल्लुक नहीं होता है बहुत से लोग हैं जो करते हैं बदजुबानी औरतों की शान में बिना मयार के लोग हैं, जिनका अपना कोई किरदार नही होता है ।