मौजूद थे अभी अभी रू-पोश हो गए
ऐ मस्त-ए-नाज़ तुम तो मिरे होश हो गए
सोते में वो जो मुझ से हम-आग़ोश हो गए
जितने गिले थे ख़्वाब-ए-फ़रामोश हो गए
(जलील मानिकपुरी)
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क़हर की रात गुज़र चुकी,
पर मेरे हर सिम्त अंधेरा है,
जो था इस दर्द का बा'इस,
उसकी सिम्त क्यों सवेरा है।-
हौसला गर समन्दर हो तेरा, तो अरमान कभी मुरझाया नहीं करते,
तूफ़ाँ आते हैं ज़िंदगी में मगर, दिल पर कभी आया नहीं करते।-
गिरह मन्नत के धागे की, अब खुलने लगी है,
बिन मांगी दुआ भी, अब मिलने लगी है।
होने लगा है शायद, मेरा रब मुझसे राज़ी,
मेरे हालात की तबीयत, अब संभलने लगी है।-
मन्नत के धागों की गिरह अब खुलने लगी हैं,
बिन मांगी ख़ुशियांँ भी अब मिलने लगी हैं।
होने लगा है शायद अब मेरा रब मुझसे राज़ी,
मेरे गुलशन की कलियां अब खिलने लगी हैं।-
सुकूँ की हवाएं भी चल जाती हैं,
दुख की घटाएं भी निकल जाती हैं।
इबादत और दुआओं की शिद्दत से,
हाथों की लकीरें भी बदल जाती हैं।।-
गुज़र रही है ज़िंदगी या गुज़र रहा हूंँ मैं,
लम्हा-लम्हा जी रहा हूंँ या पल-पल मर रहा हूँ मैं।-
क्या मैं वही हूंँ, या फिर बदल गया हूँ,
जो बिखरा था कभी, अब संभल गया हूँ।
आँखों के सामने से, छट गया है अंधेरा,
उम्मीद के उजाले से, फिर घिर गया हूंँ।-
सोज़-ए-ग़म दे के मुझे उस ने ये इरशाद किया
जा तुझे कशमकश-ए-दहर से आज़ाद किया
Josh Malihabadi-