बाहना उनका भी बाजिव था उनके लिए ।
वो गैरो के लिए अपनों को छोड़ते भी तो कैसे ।-
अहसान करके मोहब्बत का हम पर वो जताने आए ।
वो किसी और के है आज फिर यही बताने आए ।-
उसकी गली में आना जाना छोड़ दिया ।
हमने उनसे दिल लगाना छोड़ दिया ।
वो कहती रही मेरा चाहत ए ख्वाब बस तू ही है ।
पगली तूने कब से सच बताना छोड़ दिया ।-
गलतियां बहुत की है मैंने जीवन में अपने।
लेकिन यकीन मनिए कभी इरादे गलत नहीं थे मेरे।-
अदालत - ए - इश्क में उसको भी लाया जाए ।
इल्जाम अगर हम पर है तो गवाह भी वो बनाया जाए ।
वो सिसकियों में रोता रहा दुनिया को दिखाने के लिए।
दर्द मेरा भी कभी उनको दिखलाया जाए ।
और मुफल्सी में नाकारा समझ कर छोड़ दिया घर उसने मेरा।
मैं लिखने लगा हूं अब ये उनको भी बतलाया जाए।-
अदालत ए इश्क में उसको भी लाया जाए ।
इल्जाम अगर हम पर है तो गवाह भी वो बनाया जाए ।
वो सिसकियों में रोता रहा दुनिया को दिखाने के लिए ।
दर्द मेरा भी अब उनको दिखलाया जाए ।
और मुफ्लसी में नाकारा समझ कर छोड़ दिया घर उसने मेरा ।
मैं लिखने लगा हूं अब उनको भी बतलाया जाए ।-
कि वो मेरे ईमान से अब खेल रहा है
शायद मुझे अब वो झेल रहा है
और गैरो को मोहब्बत में पास कराने की जिम्मेदारी भी है उनकी ।
जो अपनी ही मोहब्बत में फेल रहा है ।
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स्कूल का जमाना होता था , दिल तेरा दीवाना होता था ।
तुझसे जो कि हर बात को जब , यारो को बताना होता था ।
तू घर से निकल कर जाती थी , तेरे पीछे - पीछे आते थे ।
स्कूल तक जाना होता था , फिर घर तक आना होता था ।
तुझसे जो कि हर बात को जब ,यारो को बताना होता था ।
तुझे देखने की खातिर , हम घूमने जाया करते थे ।
तेरे घर के आगे रुख कर के , फिर फ़ित्ते बाँधा करते थे ।
फिर तेज आवाजो में बातें कर , खिड़की पर बुलाना होता था ।
स्कूल का जमाना होता था , दिल तेरा दीवाना होता था ।
तुझसे जो कि हर बात को जब , यारो को बताना होता था।
एक बात पे जब रूठी थी तू , तो सहम गया था खुद में मैं ।
फिर प्यारी मीठी बातो से जब , तुझको मनाना होता था ।
स्कूल का जमाना होता था , दिल तेरा दीवाना होता था ।
तुझसे जो कि हर बात को जब , यारो को बताना होता था ।
जब अलग हुए हम दोनों ही , तो दिल टूटे थे सीने में ।
हमे याद है वो तुम भूल गए ,जब हम रोते थे कोनो में ।
जब तन्हाई मे रो - रो कर , रातो को बिताना होता था ।
स्कूल का जमाना होता था , दिल तेरा दीवाना होता था ।
तुझसे जो कि हर बात को जब , यारो को बताना होता था ।-
हम हुए बीमार साकी महफिलें रोने लगी ।
ग़म समुंदर ने संभाला कस्तिया खोने लगी ।
अब कहो कुछ "आंसू" तुम भी क्या खता इस बात में ।
हम नहीं उनके हुए तो काफिया होने लगी ।
तुझसे एक लम्हा संभाला जा नहीं सकता मगर ।
हम हुए बदनाम देखो चर्चिया होने लगी ।
तुम कहो हम शाम तक रुकसत भी होने जा रहे ।
रंज है इस बात का बस दूरियां होने लगी ।
अब हमारा क्या ठिकाना घर नहीं कोई दर नहीं ।
दर्द दिल से बस निकाला आंख गम धोने लगी ।
हम हुए बीमार साकी महफिलें रोने लगी ।
ग़म समुंदर ने संभाला कस्तिया खोने लगी ।-
उलझ जाता हूं मैं अक्सर तेरी हर बात ऐसी है।
जो देखे ना मुझे मुड कर तो तू बेताब कैसी है
मेरे हर ज़र्रे ने मांगा है साथ रब से तेरा ।
तू ना मिल सकी मुझको तो मेरी मात कैसी है ।
तुझे मैं भूल जाऊ यूं ही ये मुमकिन तो नहीं ।
ना चाहूं मैं तुझे पाना तो मेरी प्यास कैसी है ।
मिले है जब भी हम दोनों तो ये अहसास होता है ।
जो ना हो बात पल दो पल तो मुलाकात कैसी है ।
आसमां से गिरी बूंदे भी हमसे पूछती है।
जो ना मिल पाए हम दोनों तो ये बरसात कैसी है ।
इल्म है मुझको इतना वो नहीं धोका देगा ।
खबर आती नहीं उनकी कोई फिर आस कैसी है ।
मिलना तय था मेरी जिन्दगी में उससे मेरा ।
जिन्दगी याद में कट जाए फिर वो साथ कैसी है ।
मुझे तकलीफ ना होती जो मुझसे बोल जाता तू ।
जो गुजरी इंतज़ार में वो पूछो रात कैसी है ।
ना पता रास्ता मुझको ना पता मंजिले मेरी ।
फंसी मझधार में कस्ती हाथ पतबार कैसी है ।
अश्वनी वशिष्ठ "आंसू"
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