देश का मंगल करने को, मंगल दे गए प्राण जान से ज्यादा प्यारी थी, उनको देश की शान नेता जी पर क्या समझेंगे, मुल्क बेच हर्षाते भारत मां को नोच खा गए, जेबें भरते जाते मंगल के प्यारे वतन को, चबा गए बेईमान देश का मंगल करने को, मंगल दे गए प्राण
यह तो पता है कि कतराते हैं लोग खुशियां बांटने में यह भी पता है कि माहिर हैं लोग कमियां छांटने में पर क्या किसी ने जुर्रत की है खुद के अन्दर झांकने की जिससे पता चलता वज़ूद खुद का जीवन के आइने में।
ना जाने क्यूं खुश होते हैं लोग, झूठी ख़ुशी पाने में हालांकि खुदा वक्त नहीं देता,इस खुशी को मनाने में फिर क्यूं ना हम खुदा की, खुदगर्जी में अपनी चाह करें ग़म को सौंप कर खुदा को,रहें भक्ति के मयखाने में