क्या तुम जानती हो?
मेरी बेबसी जब तुम सामने हो
फिर भी दिल की बात न कह पाना
तुम्हे बता देने की चाहत हो
फिर भी इंकार के डर से
इजहार न कर पाना
क्या तुम समझती हो?
हमारी होने वाली कभी- कभार की बातें
तुम्हारी बस यूँ ही बात कर लेने की आदतें
चंद समय की ही सही
वो छोटी सी मुलाक़ात
दिल मे उमड़े ढेरों जज्बात
जो मैं कह न सका
वो सारी बात
जाहिर जो न कर सका
तुम्हारे पास होने के
वो सारे खूबसूरत एहसास
क्या तुम भी महसूस करती हो?
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बाकी पता 'आशु' को भी है कि वो उनके नह... read more
स्टेशन पर बैठे उस
निराशा,हताशा,संशय, असुरक्षा से भरे
मुसाफ़िर सा हूँ।
जो शहर को छोड़ अपने गांव लौट जाना चाहता है
और तुम उस आखिरी रेल सी
जो अभी अभी गुजर चुकी है।
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उन्हें फर्क़ नहीं पड़ता
तुम उन्हें चाहते हो न
तुम उन्हें हर पल सोचते हो न?
उन्हें खुश देखने की कोशिश करते हो न?
तुम उनका साथ चाहते हो न?
ऐ दोस्त उन्हें फर्क़ नही पड़ता
तुम क्या सोचते हो
उन्हें कितना चाहते हो
तुम्हें क्या लगता कि
तुम्हारा प्यार देखउन्हें भी
वो बेबसी होगी जैसे तुम हो जाते हो
नहीं बिल्कुल नहीं
तुम उनके लिए कुछ भी करो
अब मान भी जाओ
उन्हें फर्क नही पड़ता।
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इस तपन में भी तेरी बातें ठंडक दे रहीं मूझे
समझ नही आता शोखी कहूँ ....हँसी कहूँ
या छाया कहूँ तुझे
तू शाम की अंगड़ाई सी झिलमिलाती
मुझमें समाती हैं यूँ
समझ नहीं आता बारिश कहूँ....
आंसू कहूँ या माया कहूँ तुझे
कुछ बातें ....अधूरी सी हैं
पर क्या कहूँ तुझे?
खुद का प्रतिबिंब कहूँ या
साया कहूँ तुझे?-
वो हमारी पहली-आखिरी मुलाक़ात
तुम्हारी आंखों की बेचैनी
मेरा वो वक़्त रोक लेने की चाह
मेरा तुमसे नजरें मिलाना
मिल जाने से दोनों का शरमा जाना
अपनी खूबसूरती की तारीफ सुन
तुम्हारा नजरे झुका लेना
मेरे निहारने में तुम्हारा हल्का सा
घूम जाना
और जुल्फें संवारते हुए हल्का सा देख लेना
फिर बोलना 'कुछ कहना था न तुम्हे'
और मेरा चुप हो जाना
कैसे बयाँ कर देता सारे जज्बात
मुझे तो मुद्दतों तक निहारना है तुम्हे
और हर रोज कुछ कहना है तुमसे
उड़ेलूँ जज्बात सारे नजरों के सहारे
शब्द मौन हो जज्बात मुखर
मैं कहूँ कुछ भी न
समझ तुम सब जाओ
......
अल्फ़ाज़ों में भी बयाँ कर सकूँ सारे जज्बात
काश न हो वो हमारी पहली-आखिरी मुलाक़ात .
~सूफी आशु
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आदत सी हो गयी है तुझमे खुद को देखने की
तू न समझे तो न सही
मुझे आदत सी हो गयी है तुझे अपना समझने की-
तुम हो तो अच्छा लगता है
खामोशियों में भी उनका खयाल
अच्छा लगता है जब वो पूछते हैं
क्या अच्छा लगता है?
कैसे हम उन्हें बतायें की क्या क्या
अच्छा लगता है।
समझ जाओ न
वो सब अच्छा लगता है।
जो लम्हा तुम्हारे साथ
जिया गया हो।
तुम्हारी वो बातें,
वो तुमसे जुड़ी हर यादें
सब अच्छा लगता है।
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सत्य जीवन का है यही
कभी तुम्हे रुकना है नहीं
चाहे कोई रोके तुम्हे
चाहे कोई टोके तुम्हें
चाहे रोड़ा बने कोई
चाहे हो मुकाबला तूफान से
हो सामना किसी शैतान से
चाहे दरिया आग का हो
कोई अपना भी साथ न हो
फिर भी अकेले लड़ और बढ़ चल
पास है तेरी मंजिल
अभी,
तुम्हे रुकना है नहीं
...............तुम्हें रुकना है नहीं
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