जात पात की करो न बातें, न बोलो कड़वी बोली, हाथ में लेके रंग अबीर सब मिलके खेलो होली। आओ मिलके गले लगो सब भूलो बीती बातें, आज के दिन तो राजनीति को मारो भइया गोली।
हे भगवन कृपा करो प्रतिपल, असीमित महिमा औऱ शक्ति प्रबल। हे नाथ आप जग स्वामी हो, सर्वस्व में अंतर्यामी हो। मैं पथिक एक बस पैदल हूँ, मैं दास तुम्हारा अविरल हूँ।
समझ में ये नहीं आता, न जाने कैसा मंज़र है। लोगों की जुबानों पर दुआ,और दिल में खंज़र है।। न जाने मुस्कुराती कलियाँ कैसे खिलती हैं उसपर। जो जमीनें एक अरसे से,बिना बारिश के बंज़र है।।
कभी हँसने नहीं देता, कभी रोने नहीं देता। जो करना प्यार मैं चाहूँ, ये भी होने नहीं देता। न जाने ग़म में संग है, या रज़ा मन्दी से मेरा है। मैं छूना लब से जो चाहूँ, तो लब छूने नहीं देता।
ये लिबासी चीथड़े तन पर भी, तन ढँकने नहीं बचते। कभी नींदे नहीं बचती, कभी सपने नहीं बचते। तुम्हारी आजमाइश हो गयी तो,अब जरा ठहरो। कि मत परखो परखने से सभी अपने नहीं बचते।
ये जो नज़रें वज़रें चुरा रही हो तुम, कुछ बात तो है जो मुझसे छिपा रही हो तुम, और इतनी भी मासूम तो नहीं थी कभी, आज कल दर्पण को चाँद का दीदार करा रही हो तुम।