धर्म के नाम पर
अधर्मियों द्वारा किए गए
दंगो में मृत पड़ी मानवता के मध्य
जन्म लेती है एक क्रूर विचारधारा
जो दूषित विचारों के गर्भ से जन्मी होती है 🙏-
#book_lover
#music_lover
#sports_lover
#student@Delhi_university
#from_varanasi
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ये शहर आंख में धूल झोंकता है
पहली बार मिलने पर आप
इसे समझ ही नही पाओगे
ये शहर भागता हुआ दिखाई तो देगा
पर घाटों पर आके
एकदम से ठहर सा जायेगा
ये शहर आपको बेतरतीब तो लगेगा
पर उलझी हुई
सकरी गलियों में
आके एकदम से सुलझ जाएगा
ये शहर आपको जीने से ज्यादा
मृत्यु सिखाएगा
ये शहर आपको मोह लेगा
और अगले ही पल
मणिकर्णिका पर
उसी मोह को राख कर देगा।
ये शहर आपको गंगा का बहाव भी सिखाएगा
किंतु उसी किनारे आपको किसी
बाबा की एकाग्रता भी देगा।
ये शहर नही है
एक दर्पण है
जिसके आर पार
जीवन के कई सत्य दिखते है।।-
उसे क्रिकेट नहीं पसंद था
पर मुझे वो पसंद थी।
उसे चाय नहीं पसंद थी
पर मैं उसे पसंद था।
हमारी पसंद और नापसंद के
बीच खूबसूरत ये था कि
हम दोनों एक दूसरे को पसंद थे❤️-
ओस की बूंदों से
कह रहा है वो
श्रृंगार हो तुम
इन नर्म मुलायम घासों का
इन फूलों की कलियों का
बारिश की बूंदों से
कह रहा है वो
तुम भी श्रृंगार हो
इन शांत बहती नदियों का
इन ऊंचे ऊंचे पहाड़ों का
आंखों के बूंदों से
पूछ रहा है वो
क्या तुम भी श्रृंगार हो?
मेरी भावहीन आंखों का
पूछ रहा है वो
क्यों कुरूप कर देती हो मुझे
जब जब तुम आंखों में होती हो
क्यों तुम भिन्न हो
बारिश की बुदों से
उन ओस की बुदों से।
क्या तुम नहीं बन सकती?
मेरी आंखों का श्रृंगार
पूछ रहा है वो।
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पुराना,कुछ उलझा हुआ, कुछ राज़ समेटे
मुझे मेरा इश्क़ भी "बनारस" सा लगता है।-
ना तुम शीर्षक में थे
ना ही भूमिका में
ना तुम आए प्रथम अध्याय में
न ही किया मैने वर्णन तुम्हारा
अपनी कहानी के मध्य में
तुम सहसा आए कहानी के अंत में
शायद मैं तुम्हें इस प्रेम कहानी का
अंतिम अध्याय बनाना चाहता हूं ।-
कभी कभी अतीत की यात्रा
बड़ी सुखद होती है
कान में बजते संगीत के मध्य
अचानक से अतीत के क्षण का
स्मृति पटल पर उभर आना
बड़ा ही सुखद होता है।
कुछ धुंधले दृश्यों के बीच
गंगा घाट के उस पार
रेत पर तुम्हारा नाम लिखता मैं
लहरों के बीच अपने पांव डालकर
प्रसन्नता से थिरकती तुम
रेत को हाथ में पकड़कर फिसल जाने की
मिसाल देता मैं
मुस्कुराते हुए मेरा हाथ थामकर
जन्मों तक साथ रहने की बातें करती तुम।
उस एक क्षण में ना जाने कितनी ही
सुखद स्मृतियों का बोध होना
खींच लेता है मुझे वर्तमान की
वास्तविकता से परे,
उन स्मृतियों की ओर
जहां वर्तमान की पीड़ाओं का
लेश मात्र भी
मुझे बोध नही।-
तेरी हर बात तेरा हर बात से मुकर जाना
बड़ी मुद्दत बाद तेरा ये हुनर जाना।
बड़ी उम्मीद से आए थे शहर तेरे
बड़ा चुभ गया तेरा करीब से गुज़र जाना।
मेरी आंखें शायद अब भी तुझे पहचानती है
गवाही है तुझे देख इनका यूं उतर जाना।
जिसे मांगों दुआओं में मिल जाए मुमकिन है क्या
तुम मिल गए तो दुआओं का असर जाना।।-
मेरी कविताएं
सदैव अधूरी लगती थी
कभी अलंकार युक्त होकर
भावहीन
तो कभी रस से पूर्ण होकर
अर्थहीन
कविताओं का इतना अधूरापन
मुझे खटकता रहता था
हमेशा एक प्रश्न चिह्न रहा
मेरी कविताओं की पूर्णता पर
पर जबसे तुम मेरी
कविताओं का आरंभ हुई हो
तुम मेरी कविताओं का
पूर्ण विराम बन गई हो।-
तुम कटु सत्य हो
मैं मिथ्या हूं।
तुम सृजन हो
मैं विनाश हूं।
तुम सम्पूर्ण हो
मैं शेष हूं।
तुम शाश्वत हो
मैं क्षणिक हूं।
तुम मौन हो
मैं गूंज हूं।
तुम गंगा हो
मैं अपवित्र हूं।
हम दोनों भिन्न है
विलोम शब्दों की तरह
हमारे अर्थ सदैव भिन्न रहेंगे
जीवन के हर प्रसंग में
हम साथ रहकर भी
पृथक ही दिखेंगे।
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