गुनाह है की हसीन नाज़नीन पे यकीन किया जाय,
बेहतर है जाम - ए - ज़हर लिया जाय,
अपनी मौत का खंजर क्यों दे गैरों के हाथों में,
ये मौत की मयकशी का प्याला खुद ही पीया जाय।
किश्तों में मरने से कहां काम हो,
हो घुटी हुई सांसे तो कहां आराम हो,
सांस आए पूरी चाहे आखरी ही हो,
अंजाम हो पूरा चाहे काम तमाम हो।
जीना है तो रोज़ जी के एक दिन मरो,
खुद को लुटा दो औरों पे इस बेखुदी से मरो,
कल की सोच के जो आज मर मर के ही जिए,
यूं मर मर के जीने से भला एक बार ही मरो।
मगर गुस्ताखी ये न हो की प्यार अधूरा ही करो,
अगर बढ़ाया है जो हाथ तो आखरी सांस तक धरो,
और अधमरा कर के अगर दफनाया इश्क को,
आंखों से खून बहेगा, है बेहतर की अभी बेमौत ही मरो।
खैर अब दास्तां खत्म होने को है तो लबों को आराम देते है,
बेवफाओं को, समझने, अगले जनम में, वफ़ा का पैग़ाम देते है,
अब जीने से मन भर गया है, अलविदा कहते हैं ऐ दोस्त,
हम मौत पर राहें बदलने से पहले, आखरी सलाम कहते हैं।
-