अब तो सीधी सड़कों पर भी ठोकरें लगने लगी है, शायद हमने वक्त से दगा किया था।
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वो पंछी जिसके जख़्मों पर मैंने मरहम लगाया था, घाव भरते ही वो अपने घर को लौट गई।
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लौट के न आएंगे वो गुज़रे दिन भले ही, पर उनका वो साथ वक्त ज़रूर दोहरायेगा।
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आशियाना ढूंढने चला था मैं खुले आसमान में ही, पहली बारिश से मुझे मेरी औकात समझ आ गई।
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उनसे मिलकर लगा की मानो ज़िन्दगी मिल गई, पर हमें क्या पता था, की इस ज़िन्दगी की ज़िंदगी भी, बस दो पल की ही है।
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ठहरे समंदर में फिर एक हलचल सी हुई है, शायद कोई है उस ओर जिसने मेरा पता पूछा है।
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उम्मीदों के बोझ यूं लेके, सर पे मेरे अपनों का, निकल पड़े हम नए सफर में, उठा के झोला सपनों का।
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बैठ चांदनी रातों में हम भी ख्वाब सजाते हैं, धीमे-धीमे ही सही बस तेरे होना चाहते हैं।
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"पलकों की छाँव में ये जो कुछ ख्वाब सुनहरे हैं, इन्हें दिल में कहीं नज़रबंद कर लो साहब, कहीं दुनिया की नज़रें पड़ गई, तो ये फिर कभी पूरे ना हो सकेंगे।"
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हमें गवारा है कि ये पल यूँ ही बीत जाये सिर्फ उन्हें निहारते हुए, पर इस पल में वो किसी गैर की हो जाये ये हमें मंजूर नहीं।
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