दिखती अंधियारी चारो ओर
चहुं ओर विलासिता छाई है
कृत्रिम जगनुओं के रोशनी तले
मानवता झूमती आई है — % &-
दूजे को जाओगे
जिस लेख को पढ़ोगे
उसी भाव को पाओगे
हूं मै सुगंध सा, रमा हूं मै शं... read more
मच रहा क्यों शोर है
जब मामला कुछ और है
यहां हर मोड़ पर है ताले तो
हर ताले का तोड़ है
मंजिल दिखती पास नहीं
लगती लंबी यह दौड़ है
लंबे जीवन का सार यह छोटा
जाने कैसा यह निचोड़ है
करोड़ों में है देवता , लगी बेहिसाब सी होड़ है
दानव सारे इक जुट हो आए ,
बना मामला बेजोड़ है
काल की मडोड़ है
सुनो साल का निचोड़ है
क्षेत्र का रणविजय , रणछोड़ है
दिखती , मगर कहानी कुछ और है-
अगर मैं शराब होता तो शायद ,
सबसे खराब होता
ना होती मेरी घूंट में तरावट कहीं भी
ना ही मै सुकून के आस-पास होता ।
-
तुम घाट यमुना का हो जाओ
मैं पाखर बन तुझमें ठहरूं
तुझमें मिलकर , तेरा होकर
हर पल खुद में , मैं और संवरूं
तुम हो कृष्ण की मुरली सी
और मैं , उस मुरली की तान प्रिये
रोज तेरे होठों से , छिड़
करूं खुद में नित , अभिमान प्रिये
तुम भोर बनारस जैसी हो ,
मैं विश्वनाथ का उद्घोष प्रीये
तेरे बिन ऐसा मैं , जैसे
पतंग बिना किसी डोर प्रिये
महाकाल की महिमा सी तुम
उज्जैन का हो उपहार प्रिये
रूप-रंग का मोल नहीं अब
तेरा हर रूप मुझे स्वीकार प्रिये
कैसे कह दूं , भूल गया मैं
मेरी जीवात्मा का आभास हो तुम
जैसे मीरा कृष्ण संग लागी
वैसे ही मेरे पास हो तुम
-
मैं लेखक हूं , लिखता रहूंगा
जब तक मेरे देह में पानी है
अगर गुमनाम मौत मिले मुझको भी
तो लिखना मेरा बेमानी है
-
मीठे ख्वाब है, खारा पानी
दो नैनो की यही कहानी
लिए खाली हाथ और खींची पेशानी
कहो
कैसे लिखूं मैं नई कहानी-
मीठे ख्वाब थे , खारा पानी
आंखो का यह खेल निराला
चंचल इन नैनो के पीछे
जिम्मेदारियों का बोझ संभाला
और कैसे लिख दू चपलता तेरी
तू तो खुद में एक पहेली
थी पतझड़ , लो बरसा सावन
है धूप , छांव का खेल यह सारा
-
मुर्दों का भी , इक जहां होना चाहिए
जलाने को उन्हे भी , इक मसान होना चाहिए
जहा लोग ख्वाइशें दफना सके अपनी
शहर में एक तो ऐसा कब्रिस्तान होना चाहिए-
जिस्म टटोल लेना , मुझे जलाने से पहले
मैं कहानीकार हूँ ,
अक्सर जीते-जी , बे-मौत मरा हूँ-
घड़ी यह घड़ी ,
कैसे गले है पड़ी
कल यह तेरे पीछे थी
आज तुझे इसकी है पड़ी-