Ashutosh Bharti   (आशुतोष भारती)
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Joined 14 November 2017


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Joined 14 November 2017
30 DEC 2018 AT 20:48

रोज सपनों में एक धुंधला-सा चेहरा नज़र आता हैं..
उसकी वो परियों-सी मुस्कान मुझे खुशनुमा कर जाता हैं..

वैसे कहने को तो वो साथ मेरे हमेशा रहती हैं..
लेकिन सपनों से बाहर उसकी यादें ही रह जाती हैं..

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29 DEC 2018 AT 19:54

याद तो आता है बहुत वो बचपन अपना..
ना किसी बात का गम..
और ना किसी बात का अफसोस..
जीना अपनी मर्जी से, लेकिन सुनना सबका..
वो पापा से चॉकलेट के लिए रुपये माँगना..

बहुत याद आता है वो बचपन अपना..
वो रोज कपड़े गंदे करके घर मे माँ से डॉटे सुनना..
पापा का रोज विद्यालय छोड़ने आना और ले जाना..
वो बड़ो का नकल करके दिखलाना और जंगलों मे खेलना..
दोस्तों से झगड़े करना और बाद मे फिर उन्हीं के साथ खेलना..

बहुत याद आता है वो बिता हुवा पल अपना..
काश वो दिन वापस आ जाते..
फिर से वो लम्हें जी पाते..
शायद ये सम्भव नहीं है अब..

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28 DEC 2018 AT 20:48

मौसम बहुत बेईमान है..
कहने को बदनाम है..

लेकिन दिवानो के लिए..
यादों का भरमार है..

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27 DEC 2018 AT 20:04

कुछ इस समय की पावंदी थी,
तो हमारी भी कुछ मजबूरी थी..

लेकिन कुछ तो था हमारे दरमियान कहने के लिए,
यूँ खुद में खुद-ही को खोने के लिए...

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26 DEC 2018 AT 22:36

कुछ खास हो आप..
चार पंक्तियों की नहीं..

पूरी ज़िंदगी की एक किताब हो आप..
मेरे ज़िंदगी में कुछ खास हो आप..

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25 DEC 2018 AT 20:44

दिल की बात को जान जाना,
हर किसी के बस में नहीं..

जान कर यूँ ही बच जाना,
हर किसी के लिए आसान नहीं..

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24 DEC 2018 AT 20:14

याद बन कर रह गई हो तुम..
उम्मीद दिला कर बिछड़ गई हो तुम..

काश पलट कर रोक लिया होता तुम्हें..
तो आज यूँ याद ना होती तुम..

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23 DEC 2018 AT 19:33

खुद पर से भरोसा खोने लगा हूँ..
समझ के परे कुछ करने लगा हूँ..

कुछ यादों को साथ रखने के लिए..
तो खुद में ही खोने के लिए..

कल क्या होगा यहाँ पर इससे अंजान..
आज दो पल खुलकर जीने लगा हूँ..

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22 DEC 2018 AT 20:15

इस जहान में कुछ अपनी मजबूरियाँ थी..
तो कुछ इस समय की लाचारियाँ थी..

ठाम हाथ समय का इस ज़िन्दगी नें..
मुझे यूँ अकेला रहना सीखा दिया..

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21 DEC 2018 AT 20:23

जब प्यार की बातें इन आँखों से उतर जाती है..

तब चेहरे पर झूठी मुस्कान की परत आ जाती है..

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