Ashu Mishra   (आशु)
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Urdu/Hindi poet
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Lyrics writer
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Joined 9 December 2016


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10 OCT 2020 AT 8:22



सुख़न-ए-हक़ का अलमदार नया कोई नहीं
फ़ैज़ के बाद बग़ावत की सदा कोई नहीं

अपनी बद-हाली से मैं पूछता रहता हूँ बता
शहर-ए-दिल मे कोई मेहमान बचा ? - कोई नही

उसकी तन्हाई में इक उसके सिवा मैं भी हूँ
मेरी तन्हाई में इक मेरे सिवा कोई नहीं

ख़ूब ढूँढा कि तेरे दिल का बदल मिल जाए
दो जहानों में मगर ऐसी जगह कोई नहीं

मेरी तक़दीर को तस्वीर को या दुनिया को
या तो बस आप बदल सकते हैं या कोई नहीं

- Ashu Mishra

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29 SEP 2020 AT 11:30

ख़ामोशियों ने शोर-ओ-शग़ब बन्द कर दिया
दिल ने मलाल-ए-रफ़्तगाँ अब बन्द कर दिया

आँखों का काम आँखों के ज़िम्मे पे छोड़ कर
इज़हार-ए-इश्क़ को पस-ए-लब बन्द कर दिया

अपनी बला से वक़्त पे आओ कि बाद में
हमने घड़ी को देखना अब बन्द कर दिया

आ कर जहान-ए-शोर से आजिज़ कभी-कभी
दरवाज़ा क़ब्ल-ए-आमद-ए-शब बन्द कर दिया

हसरत की चाबियाँ तह-ए-दरिया सुपुर्द कर
इक रोज़ हमने बाब-ए-तलब बन्द कर दिया

तुम कबसे होने लग गए "आशू" शरीक-ए-ग़म
तुमने दिलों को तोड़ना कब बन्द कर दिया

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25 SEP 2020 AT 10:08

राह-ए-मुश्किल पर भी मेरे हमसफ़र मेरी ग़ज़ल
उस तरफ़ सारा ज़माना है इधर मेरी ग़ज़ल

ख़ैर-ओ-शर के पेश-ओ-पस में डूबता मेरा वजूद
अहल-ए-दुनिया की ख़बर से बे-ख़बर मेरी ग़ज़ल

दर्द में भी सब्र देता है मुझे मेरा सुख़न
दश्त में भी ढूँढ लेती है शजर मेरी ग़ज़ल

आ रही है इसलिए भी इससे बू-ए-आब-ओ-गिल
गर्म साँसों पर पकी है रात भर मेरी ग़ज़ल

लज़्ज़त-ए-सहरा-नवर्दी घर पे ही मिल जाएगी
शाइर-ए-दिल ! आप पढ़ लेंगे अगर मेरी ग़ज़ल

हर्फ़ बुनता हूँ सितारे टाँकता हूँ रात-दिन
और इस जी तोड़ मेहनत का समर मेरी ग़ज़ल

मैं भी हामी हूँ कि शेर-ओ-शाइरी में कुछ नहीं
"कुछ नहीं" में भी कहीं पर बूँद भर मेरी ग़ज़ल

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23 SEP 2020 AT 22:09

ख़ुशियाँ न मना दोस्त ! मुझे अपना बना के
रहगीर भटक जाते हैं मुझ दश्त में आ के

इक राह पे आबाद थे हम दोनों मुसाफ़िर
वो रो के सफ़र काटता मैं शे'र सुना के

उम्मीद थी जिस मोड़ पे बदलेगी कहानी
मुँह मोड़ लिया उसने उसी मोड़ पे आ के

मैं रात में किरदारों की तह खोलने लगता
अहबाब तो सो जाते कहानी को सुना के

ख़ामोशियाँ उस शख़्स का तोहफ़ा हैं मुझे जो
चुप हो गया आवाज़ में आवाज़ मिला के

वो मिल के बिछड़ने का हुनर जानने वाला
तस्वीर बना देता है तस्वीर में ला के

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17 JUL 2020 AT 18:27

क्या अजब है कोई दीवार न दर मेरा है
फिर भी इस शहर के लोगों पे असर मेरा है

पूछ लूँगा मैं किसी शाम दिल-ए-बे-कल से
वो मेरा क्यों नहीं लगता है अगर मेरा है

मैं भी शामिल हूँ तेरे और गिरफ़्तारों में
तेरी गिनती में कोई एक सिफ़र मेरा है

तेज़ बारिश में किसी पल यहाँ आ बैठा था
अब कि जिस शाख़-ए-सलामत पे बसर मेरा है

जिस्म को फूल बनाने की अदा है तुझ पर
मैं इसे नज़्म बना दूँ ये हुनर मेरा है

दश्त आदाब करे देख के ऐसा रुतबा
हर किसी का नहीं होता है मगर मेरा है

- Ashu Mishra

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6 JUL 2020 AT 10:07

सूरत-ए-दिल पे अजब मुर्दनी छाई हुई है
हमपे लानत ये फ़ज़ा हमने बनाई हुई है

आलम-ए-हिज्र की वहशत से डराने वालो
मैंने इस दश्त में इक उम्र बिताई हुई है

ऐन मुमकिन है किसी दिन कोई भर ही जाए
जो जगह आपने सीने में बनाई हुई है

सोचता हूँ कि नये ज़ख़्म ख़रीदूँ इससे
शा'इरी बेच के जो थोड़ी कमाई हुई है

मेरे अश'आर किताबों में नुमाया हैं अब
मेरी तन्हाई भी बाज़ार में आई हुई है

उसके तुम आख़िरी सा'मे हो ज़रा नाज़ करो
मैंने जो नज़्म कई ठौर सुनाई हुई है

क़रिया-ए-हुस्न मेरे नाम पे दम भरता है
मेरे शे'रों ने मेरी बात बनाई हुई है

Ashu Mishra

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2 MAR 2020 AT 11:40

जब उससे कहनी थी दिल की मैं कह नहीं पाया
समझिये वक़्त पे मुझसे बज़र बजा ही नहीं

मैं जिसकी सोच में डूबा हुआ हूँ वो लड़की
ये सोचती है कि मैं उसको सोचता ही नहीं

- ashu mishra

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2 MAR 2020 AT 11:36

कोई फ़ोटो निकालो दोस्त अलमारी से पहले का
इन्हें चेहरा दिखाओ मेरा मिसमारी से पहले का

तेरी आमद ने मुझको ज़िन्दगी जीना सिखाया है
कोई क़िस्सा नहीं मुझ पर तेरी यारी से पहले का

Ashu Mishra

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2 MAR 2020 AT 11:23

शब-ए-सियाह गुज़रती है किन अज़ाबों में
बिखरते शहर के मंज़र हैं मेरे ख़्वाबों में

ये आप गिनिये की लाशें किधर ज़ियादा हैं
मैं तंग-दस्त हूँ इस तरह के हिसाबों में

लिखा हुआ था कि इक-दूसरे से प्यार करो
जले घरों से मिली अधजली किताबों में

सुकूँ का कोई भी लम्हा हमें नसीब नहीं
ख़ुशी की कोई भी सरगम नहीं रबाबों में

मैं बात-बात पे रोने लगा हूँ सो यारब !
तू मेरी ख़ामुशी को दर्ज़ कर जवाबों में

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8 FEB 2020 AT 1:57

अपने बीमार को बीमार ही रक्खो हर दम
ऐसा करने से मसीहाई बची रहती है

एक आवाज़ से सन्नाटा चला जाता है
एक तस्वीर से बीनाई बची रहती है

Ashu Mishra

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