Ashu Mishra   (आशु)
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Urdu/Hindi poet
Performer
Lyrics writer
Freelancer
Joined 9 December 2016


Urdu/Hindi poet
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14 FEB 2022 AT 18:16

बरसों टिंडर पर घूम घूम
एफबी पर डीपी चूम चूम
सब धूप घाम इंस्टा ट्विटर
सिंगल्स आये कुछ और निखर
सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें ब्लंडर कब होता है

'समथिंग एल्स' समझाने को
सबको सुमार्ग पर लाने को
डेटिंग के लाभ बताने को
पल भर कमिटेड हो जाने को
सिंगल्स चले डीएम आये
विथ हार्ट भेज डाला "हाय"

‘दो वक़्त अगर तो आधा दो,
पर, इसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल सात दिवस
इस हफ़्ते भर की बात है बस
हम वही ख़ुशी से जी लेंगे
सब फटी कमीजें सी लेंगे

लेकिन वो ये भी दे न सकी
लौंडे की दुआएं ले न सकी
उल्टे ये मैसेज किया सेंड
तुम अच्छे हो 'बट एज़ अ फ्रेंड'
जब नाश मनुज पर छाता
पहले ह्यूमर मर जाता है

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30 AUG 2021 AT 13:41

मिट्टी का जिस्म मौसमों का हम-सफ़र भी था
लेकिन मेरे वजूद को बारिश का डर भी था

दुश्वारियाँ तो आपके हमराह भी न थीं
लेकिन मेरी निगाह में अगला सफ़र भी था

बहरूप उसकी आँख के ढलने लगा हूँ अब
मुझको मेरा मिज़ाज कभी मोतबर भी था

तन्हाइयाँ लिबास की सूरत बनी रहीं
कहने को मेरे पास में तुम भी थीं घर भी था

इक वसवसा मुक़ीम रहा चाहतों के बीच
सौ हामियों के साथ तेरा इक 'मगर' भी था

पुरखों की जायदाद बसर का सबब बनी
हालांकि मेरी जेब में दस्त-ए-हुनर भी था

Ashu Mishra

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5 AUG 2021 AT 20:53

बनावट से हुनर में बेहतरी शायद न आये
तुम्हें मय-ख़्वारियों से शाइरी शायद न आये

بناوٹ سے ہنر میں بہتری شاید نہ آئے
تمہیں مے خواریوں سے شاعری شاید نہ آئے

जुदा जिस पेड़ के साये में दो साये हुए हों
मुसाफ़िर को वहाँ फिर नींद भी शायद न आये

جدا جس پیڑ کے سائے میں دو سائے ہوئے ہوں
مسافر کو وہاں پھر نیند بھی شاید نہ آئے

मैं ग़ार-ए-ख़ुद-परस्ती का मकीं होने लगा हूँ
यहाँ तक अब तुम्हारी रोशनी शायद न आये

میں غارِ خود پرستی کا مکیں ہونے لگا ہوں
یہاں تک اب تمہاری روشنی شاید نہ آئے

बहुत मुमकिन है आ जाये तुम्हारे जैसा कोई
पर उसके जाने पर ऐसी कमी शायद न आये

بہت ممکن ہے آ جائے تمہارے جیسا کوئی
پر اس کے جانے پر ایسی کمی شاید نہ آئے

मुझे अव्वल किसी की याद आती ही नहीं है
किसी की आ भी जाये पर तेरी शायद न आये

مجھے اوّل کِسی کی یاد آتی ہی نہیں ہے
کسی کی آ بھی جائے پر تری شاید نہ آئے

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24 JUN 2021 AT 11:10



वो एक शख़्स अगर महव-ए-इंतज़ार न हो
सफ़र से आए हुओं में मेरा शुमार न हो

क़ुबूल कर के इसे राब्ता बहाल करो
कहीं ये फूल मेरी आख़िरी पुकार न हो

तेरे जमाल ने सूरज को रौशनी दी है
सो कौन है जो यहाँ तेरा क़र्ज़-दार न हो

वो तेग़-ए-चश्म मेरे सामने है और उसका
ख़ुदा करे कि कोई दूसरा शिकार न हो

तमाम रात की बेदारियों से लगता है
हमारा ख़्वाब किसी आँख पर उधार न हो

तो मान लीजिए वो दर उस अप्सरा का नहीं
जहाँ क़तार में शामिल ये ख़ाकसार न हो

- Ashu Mishra

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10 MAY 2021 AT 20:19

हालात वो कि आँख को मंज़र नहीं नसीब
दिल वो कि दौड़ कर किसी सीने से जा लगूँ

- Ashu mishra

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8 MAR 2021 AT 10:46

सफ़र में लुत्फ़ के इमकान खींच लेती है
सड़क की भीड़ मेरा ध्यान खींच लेती है

अगर जो दिन में उदासी से जी चुराऊँ तो
हवा-ए-शाम मेरे कान खींच लेती है

ऐ बे-तकुल्ल्फ़ी में हाथ खींचने वाले
ये खींच-तान मेरी जान खींच लेती है

मैं उससे गुफ़्तगू बे-रोक-टोक चाहता हूँ
वो जिसकी ख़ामुशी तक ध्यान खींच लेती है

तुम्हारी याद ब-ज़ाहिर तो रौनक़-ए-दिल है
मगर ये होंटों से मुस्कान खींच लेती है

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19 DEC 2020 AT 14:16

आँखों से तेरी छब का असर क्यों नहीं जाता
नश्शा है अगर ये तो उतर क्यों नहीं जाता

जा कर भी तेरे नक़्श नहीं जाते हैं दिल से
सर जा चुका है, सौदा-ए-सर क्यों नहीं जाता

गर मिल नहीं सकती मुझे तुझ फूल की ख़ुशबू
फिर शाख़-ए-तमन्ना से उतर क्यों नहीं जाता

हैरत है कि जो जुर्म किया साथ में उसका
इल्ज़ाम कभी आपके सर क्यों नहीं जाता

ये राज़ भी खोलूँगा मैं दुनिया पे किसी रोज़
मर-मर के जिये जाता हूँ मर क्यों नहीं जाता

मैं हुस्न की बस्ती का सफ़र छोड़ चुका हूँ
फिर भी मेरे महबूब का डर क्यों नहीं जाता

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8 DEC 2020 AT 11:13

दुनिया ! तू मुझे क्यों नहीं करती है गवारा
मैंने तो तेरे संग पे शीशा नहीं मारा

कुछ देर में भर जाएगा इस नाव में पानी
कुछ देर में आ जायेगा दुनिया का किनारा

भाती नहीं इस फूल की ख़ुशबू मुझे वरना
दुनिया ने मेरा नाम कई बार पुकारा

इक बार में लोगों पे मैं पूरा नहीं खुलता
शायद तभी हर शेर पे कहते हैं "दुबारा"

साहिल मुझे दरिया की तरफ़ खींच रहा था
फिर कर लिया मैंने भी किनारे से किनारा

दिल माँग रहा था नई हैरानियाँ आशू"
मैंने तेरी तस्वीर की आँखों को निहारा

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17 NOV 2020 AT 11:21

जो पिछले साल डूबी नाव में कोई बचा होगा
तो उसका अब भी पानी देख कर दिल डूबता होगा

पुराने ग़म नई पोशाक में ज़ाहिर नहीं होंगे
मैं ऐसा सोचता हूँ, पेड़ कैसा सोचता होगा

उदासी ख़ुदकुशी का रास्ता हमवार करती है
अगर ये मेरा मिसरा है तो नश्शे में हुआ होगा

मेरी बेहूदगी से बहता दरिया तक नहीं रुकता
भला मेरे भले हो जाने से किसका भला होगा

मैं नादिम हूँ कि मिलते ही उसे चूमा नहीं मैंने
मेरी इस बद-तमीज़ी पर उसे कैसा लगा होगा ?

धनक इक पेंटर के फैंके रंगों से बनी होगी
या मुमकिन है कोई बादल पतंगों से घिरा होगा

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13 NOV 2020 AT 11:53

तू चाहता है मुसाफ़िर अगर उदास न हो
तो देख राह का कोई शजर उदास न हो

मैं इस लिए भी तबस्सुम सजाये फिरता हूँ
कि कोई शख़्स मुझे देख कर उदास न हो

हम ऐसे लोग उसे ख़ुश समझने लगते हैं
वो आदमी जो किसी बात पर उदास न हो

कोई उदास हो मुझ पर नहीं है फ़र्क़ मगर
तू मेरी बाहों में, गुल शाख़ पर उदास न हो

घरों से निकले हुए वक़्त पर पलट आएँ
कोई चराग़ किसी बाम पर उदास न हो

मैं सबसे कट के बहुत ख़ुश रहा सो बाद-अज़-मर्ग
मेरे लिए कोई तन्हा बशर उदास न हो

हवाएँ जब दर-ए-माज़ी पे थाप देने लगें
तो कोई क्या करे "आशू" अगर उदास न हो

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