पहली बार जब मुझे गोद में उठाया होगा, उससे सुंदर कोई नजारा दिखा ना होगा!
पहली बार मेरे रोने की आवाज सुनकर, कैसे उनका भी हृदय खुशी से पिघला ना होगा!
पहली बार जब मुझे कंधे पे बिठाया होगा, मुझसे अधिक ऊंचाई पे कोई पहुंचा ना होगा!
पहली बार मेरे लड़खड़ाते कदमों को जब थामा होगा, उससे मजबूत कोई सहारा ना होगा!
पहली बार जब मैंने कोई शब्द सीखा होगा, शायद 'पापा' शब्द ही दोहराया होगा!
पहली बार जब गिरा था मैं साइकिल चलाते हुए, उनसे ज्यादा कोई घबराया ना होगा!
पहली बार जब मेरा रिजल्ट आया होगा, उनको मेरा भविष्य सुनहरा नजर आया होगा!
ऐसी कोई बात नहीं है मेरे मन की, जिसका जिक्र उनके सामने नहीं आया होगा!
गलतियां कर करके असफल भी हो गया, ऐसी कौन सी ठोकर होगी जिससे उन्होंने बचाया ना होगा!
जीवन एक जंग है, तुम बस लड़ते चलो, ऐसे ना जाने जीवन के कितने मर्म को समझाया होगा!
उनके बताए रास्ते पर चलता हूं हर वक्त, एक दिन मेरा नाम उजले आसमान में छाया होगा!
पिता के आदर्श मेरे जीवन की पूंजी हैं, उनका ही हर पल मुझपर साया होगा!
किसी परिस्थिति में नहीं पडूंगा अकेला, क्योंकि पापा ने मुझे इतना मजबूत बनाया होगा!
कर सकूंगा उनका सर गर्व से ऊंचा, इतना नाम एक दिन मैंने कमाया होगा!-
Shaping The Words Clay 🥰
Writing The Emotions 😉
Listner, Writer,... read more
क्या कहूं, कैसे कहूं, किस से कहूं, सब कुछ अधूरा सा है!
मुझपे बेवजह उठती उंगलियों का, हिसाब कुछ अधूरा सा है,
मेरी कहानी, कहानी में मेरा किरदार, सब कुछ अधूरा सा है!
आगे बढ़ना जारी है, पर मेरा अभी सफर अधूरा सा है,
मंजिल आती है नजर बहुत दूर, कयास कुछ अधूरा सा है,
बीत रही है उम्र सोच में, मन का उत्साह अधूरा सा है,
तनाव घेरे है हर वक्त मुझको, मुस्कुराने का अंदाज अधूरा सा है,
कहां जाऊं, क्या करूं, अभी तो पहला प्रयास ही अधूरा सा है,
भाग जाने को जी चाहता है, हिम्मत का ज्वार अधूरा सा है,
जिम्मेदारियों की गठरी है सर पर, उठाने का हौसला अधूरा सा है,
लड़खड़ा गया हूं, गिर जाऊंगा, दोबारा उठने का विचार अधूरा सा है,
कविताएं अधूरी रह जाती हैं, लिखने का इरादा अधूरा सा है,
किसी की सलाह अधूरी है, किसी का सहारा अधूरा सा है,
मां पापा को खुश करने का, ख्वाब अभी अधूरा सा है,
शांत चित्त से सब कुछ होगा, स्थिरता का हाल अधूरा सा है,
मुकम्मल हो जिंदगी जल्द ही, 'अस्तित्व' मेरा अभी अधूरा सा है!-
सूर्यदेव और प्रकृति की उपासना को समर्पित महापर्व छठ की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। भगवान भास्कर की आभा और छठी मइया के आशीर्वाद से हर किसी का जीवन सदैव आलोकित रहे, यही कामना है।
जय हो छठी मईया की। 😊🙏🏻-
पता नहीं कौन दिशा जायेंगे!
इधर को जायेंगे या उधर को जायेंगे,
या ऐसा हो सकता है, बीच में कहीं मुड़ जायेंगे!
समझ न आई बात तो,
जहां होंगे वहीं को रुक जायेंगे!
फिर तनिक सर खुजाके, बुद्धि का जोर लगाएंगे!
इब ना बुझे तो कब बुझोगे, सटक गए तो आगे कईसे बढ़ोगे बे!
ऐसा बोलकर खुद को हड़काएंगे!
फिर आएगी बात समझ में!
तो जिम्मेदारी का झोला उठा आगे को निकल जायेंगे!
बहुते तकलीफ है जीवन में, सोचे हैं! अबके नय्या पार लगाएंगे!
बबुआ! उमर बीते जा रही है, अब ताकत का जोर लगाएंगे!
इस बारी झंडा गाड़ के दिखाएंगे!
फेलवर स्कीम वाले बालक न रहेंगे, फर्स्ट ग्रेड पास होके दिखाएंगे!
अपनी माई बापू का नाम रोशन करके दिखाएंगे!
फेर कोई न टोकेगा खाली कहे बैठे हो बोलकर,
सब पास को आएंगे, मीठा मीठा बतियाएंगे!
बारी आई है बबुआ अब!
इ बार तो सक्सेसफुल होके दिखाएंगे!-
मेरा सफर मुझे कहीं दूर ले जा रहा है,
पता नहीं किधर, पर बस चलाकर ले जा रहा है!
शायद सब कुछ इस सफर में पीछे छूट जायेगा,
पर फिर भी मन इसके साथ भागा जा रहा है,
ना दिन की खबर है, ना रात का ज़िकर है,
बस तेजी सी चलते इस सफर का असर है,
क्या होगा आगे चलकर मुझे नहीं पता,
पर बस सफर जहां चाहता है, वहां ले जा रहा है,
गम के पहरे और पुराने चेहरे भी नहीं हैं साथ अब,
जिनसे थी उम्मीदें उनका भी कंधे पर हाथ नहीं अब,
पर फिर भी मन बेहद खुश हुआ जा रहा है,
सबसे दूर जा रहा है, पर फिर भी नहीं हिचकिचा रहा है,
कुछ आशाओं और जिम्मेदारियों का बोझ उठा रहा है,
अपने सपनों को हकीकत की शक्ल दिखा रहा है,
अपने "अस्तित्व" को सफलताओं से सजा रहा है,
मेरा सफर मुझे कहीं दूर ले जा रहा है!
मेरा सफर मुझे कहीं दूर ले जा रहा है!-
मेरे कदम वहां पहुंचकर लड़खड़ा गए,
जहां शायद इन कदमों को,
मजबूती से खड़ा होकर, मुझे सहारा देना था,
ताकि मैं अपने मजबूत इरादों के साथ,
अपने उस लक्ष्य पर पहुंचने की दौड़ लगाती,
जहां पर रुककर, शायद मैं खुद में ही पूर्ण हो जाती!
पिता के सपने को पूरा कर, खुशी से नाच पाती,
मां का मुस्कुराता चेहरा देखकर मैं झूम जाती,
नहीं होती फिर गम की कोई बात मेरे जीवन में,
अगर मैं उस रोज़ अपने इन कदमों को,
लड़खड़ाने से रोक पाती!
लड़खड़ाते इन कदमों के बीच शायद, मैंने बहुत कुछ खो दिया!!
इन परेशानियों में मैं "खुद" को भी रोक ना पाई,
जो शायद गिरने के बाद मेरा हौसला बढ़ा सकती थी!
साथ थी वो मेरी, यूं कहूं तीसरा और चौथा हाथ थी मेरी,
पर अब वो वापस नहीं आएगी, जो मेरा मन बदल सकती थी !
लड़खड़ाकर क्या गिरी मैं,
मानों झट से ही रुत बदल गई!
बेबाक, बेशुमार और बेहिसाब सी शख्सियत,
मानों पल में ही धुंधली हो गई!! - अस्तित्व ❤️✊🏻-
मेरे कदम वहां पहुंचकर लड़खड़ा गए,
जहां शायद इन कदमों को,
मजबूती से खड़ा होकर, मुझे सहारा देना था,
ताकि मैं अपने मजबूत इरादों के साथ,
अपने उस लक्ष्य पर पहुंचने की दौड़ लगाता,
जहां पर रुककर, शायद मैं खुद में ही पूर्ण हो जाता!
पिता के सपने को पूरा कर, खुशी से नाच पाता,
मां का मुस्कुराता चेहरा देखकर मन झूम जाता,
नहीं होती फिर गम की कोई बात मेरे जीवन में,
अगर मैं उस रोज़ अपने इन कदमों को,
लड़खड़ाने से और लड़खड़ाकर मुझे गिराने से रोक पाता!
लड़खड़ाते इन कदमों के बीच शायद, मैंने बहुत कुछ खो दिया!!
इन परेशानियों में मैं "उसे" भी रोक ना पाया,
जो शायद मेरे गिरने के बाद मेरा हौसला बढ़ा सकता था!
साथ था वो मेरा, यूं कहूं तीसरा और चौथा हाथ था मेरा,
पर अब वो वापस नहीं आएगा, जो मेरा मन बहला सकता था !
लड़खड़ाकर क्या गिरा मैं,
मानों झट से ही रुत बदल गई!
बेबाक, बेशुमार और बेहिसाब सी शख्सियत,
मानों पल में ही धुंधली हो गई!! - अस्तित्व ❤️✊🏻-
दे दिए ज़िंदगी को बहुत सारे काम,
फुरसत और आराम का क्या होगा?
दिन भर सफर में भागते फिरते रहते हो,
सुकून भरी शाम का क्या होगा?
खो गए हो बढ़ती जिम्मेदारियों के बीच कहीं,
गुमनाम होते तुम्हारे नाम का क्या होगा?
बोझ से धंसते जा रहे हो धरती के अंदर,
तुम्हारे उड़ान की बाट जोहते आसमान का क्या होगा?
चिंता की लकीरें नजर आने लगी हैं,
तुम्हारी फकीरों सी मौज का क्या होगा?
टूटता जा रहा है अब हौसला तुम्हारा,
खुद पे जो है, उस विश्वास का क्या होगा?
ऐसे अकेले जा रहे हो सब कुछ छोड़कर,
तुम्हारे ढलते "अस्तित्व" का क्या होगा?
पता नहीं क्या होगा, होगा या नहीं होगा!
यह होगा या वह होगा, ना जाने क्या होगा?-
एक बेज़ार मुस्कुराहट,
उसपे खुशियों का लिबास,
खिन्न हो चुका मन,
ऊपर से टूटी आस,
न पास है कोई,
न किसी पे होता विश्वास,
ढूंढ रहा हूं फिर से,
वही पुराना एहसास,
वही सुकून और ज़िंदादिली,
वही चैन की सांस,
लौट आए जल्दी से,
हौसलों का साथ,
खुशियां मिले खूब सारी,
जो बुझाए गम की प्यास!!-