Ashok Meena 'aRsh'   (ashok meena 'aRsh')
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Navodayan
Research scholar
www.instagram.com/iashoka10/
Joined 26 February 2018


Navodayan
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Joined 26 February 2018
19 DEC 2023 AT 12:48

भाव बढ़ जाते हैं 'लाठियों' के,
जब अपना 'शरीर' हमारा साथ ना दे I

गैर 'कंधों' को कमजोर कैसे कहे,
जब अपना कोई 'हाथ' ना दे I

'अपना' हो तो
'बाजुओं' में उठाना चाहिए,

ये ही काफी नहीं है
कि साथ रहे, 'लात' ना दे I

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17 DEC 2023 AT 22:42

मेहनत का मजा देखो कभी जुगाड़ के पार.
इक मीठा सा मिलन है हर बिगाड़ के पार.

संधि के रास्ते खुले रहेंगे ताउम्र, कोशिश करना,
अबके जैसे ही रखना आना-जाना राड़ के पार.

उनकी बातों का लहजा बता रहा घर के हालात,
आँखों में देखना, फिर झाँकना किवाड़ के पार.

यूँ ही गरजने से कुछ नहीं होता, कलेजा ना हो
तब साफ सुनाई देगा मिमियाना दहाड़ के पार.

भले अभी-अभी गिरे थे, अभी उठो, जिद्दी बनो,
दोस्त तुम ऐसे ही फिर मुस्कुराना पछाड़ के पार.

कहीं बस ना जाना दरिया के इसी किनारे पर,
अभी तुम्हें बनाना है आशियाना पहाड़ के पार.

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9 DEC 2023 AT 15:23

बातें उनके पास भी है,
बातें इनके पास भी है |
फर्क़ नीयत पैदा करेगी,
किसको कंकड फेंकने है,
किसको मूर्ति तराशनी है |

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9 DEC 2023 AT 15:19

बातें उनके पास भी है,
बातें इनके पास भी है |
फर्क़ सिर्फ इतना सा है,
किसी को सिर्फ कंकड फेंकने है,
किसी को मूर्ति तराशनी है |

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9 DEC 2023 AT 14:52

जब मिलते हैं लोग नये, पुराना कोई छूट जाता है I
जब भी मनाने जाऊँ किसी को कोई रूठ जाता है I

हैरत है, जाने कैसे बस्तियाँ बना लेते हैं लोग,
नया मकां जो बनाऊँ आशियां कोई टूट जाता है I

यूँ भी बड़ी मुश्किल से जुटा पाता हूँ मोती जिंदगी के,
जरा सा जो इधर-उधर होऊँ तभी कोई लूट जाता है I

जब भी लगता है सब ठीक है मस्त चल रही है लाइफ,
ठीक तभी होता है कबाड़ा मुहूर्त कोई चूक जाता है I

चलते-चलते गिरने लगता है अपने ही पैरों में उलझकर,
छोड़कर रेगिस्तान बर्फ पर जब कोई ऊंट जाता है I

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4 DEC 2023 AT 2:58


सब्र रखना,
थोड़े सुस्त है हम,
आहिस्ता आहिस्ता बनाएँगे |
हम बने रहेंगे इंसान के इंसान,
तुमको फरिश्ता बनाएँगे |

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4 DEC 2023 AT 2:29

इसी जद्दोजहद में खो दी सारी जिंदगी, अब कहाँ बनाएँगे ?
जब आये थे, सोचा था अपना इक अलग जहां बनाएँगे |

यारों, ताउम्र सुनी बेढंगी बातें कुछ बड़बोले लोगों की,
फिर एक ख्वाब देखा, कभी हम भी दास्तां बनाएँगे |

अहसानमंद हैं कि उन्होंने खिले-खिलाए फूल ना दिए,
लो सीख ली बागवानी, अब हम भी गुलिस्ताँ बनाएँगे |

मंजिल वही रहेगी जिन्दगीभर, उसे लिए बिना नहीं मानेंगे,
ठीक वही जहाँ बनी नहीं किसी से, हम बात वहाँ बनाएँगे |

वो कहकर हँसते हैं, ये देखो अपना एक अलग जहां बनाएँगे,
देख लेना, हम भी हँसकर कहते हैं, हाँ भई हाँ, बनाएँगे |

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2 DEC 2023 AT 21:59

वह अब वैसा नहीं रहा, जैसा हम सोचे बैठे हैं I
बंदा गम में भी हँसता हैं, हम खुशी में रोते बैठे हैं I

मुर्शिद, हल्के में मत लेना देखकर लहजा नरम उसका,
ये गिरेबां नहीं पकड़ सकेंगे, भले लाखों मुँह नोचे बैठे हैं I

पागल है शायद, जो इक वादे पर जान लगाए हुए है,
हम समझदार निकले, जिम्मेदारी से हाथ धो के बैठे हैं I

तकलीफ होगी मगर खुद को टटोल के देखना,
क्या हम सच में उनके हैं, जिनके हो के बैठे हैं ?

पहली फुर्सत में निकल जायेगा मौका पाकर,
वही जिसके लिये हम गंवाकर सारे मौके बैठे हैं I

दोस्त, मेरा यकीन करो, वह अब नहीं आयेगा,
जिसके इंतजार में हम अपना कारवां रोके बैठे हैं I

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2 DEC 2023 AT 20:17

वह अब वैसा नहीं रहा, जैसा तुम सोचे बैठे हो I
वो गम में भी हँसता हैं, तुम खुशी में रो के बैठे हो I

मुर्शिद, हल्के में मत लेना देखकर लहजा नरम उसका,
ये गिरेबां नहीं पकड़ सकोगे, भले लाखों मुँह नोचे बैठे हो I

पागल है शायद जो इक वादे पर जान लगाए हुए हैं,
तुम समझदार हो, जिम्मेदारी से हाथ धो के बैठे हो I

तकलीफ होगी मगर खुद को टटोल के देखना,
क्या तुम सच में उनके हो जिनके होके बैठे हो ?

पहली फुर्सत में निकल जाएगा मौका पाकर,
वही जिसके लिये तुम गंवाकर सारे मौके बैठे हो I

दोस्त, मेरा यकीन करो, वह अब नहीं आएगा,
जिसके इंतजार में तुम अपना कारवां रोके बैठे हो I

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27 NOV 2023 AT 8:12

कुछ लोग पेशानी पर शिकन लिये फिरते हैं,
जैसे किसी सूदखोर का कर्ज़ लिये फिरते हैं I

'अपच' पेट का, साफ दिखता है, 'चेहरों' पर,
शायद, 'सस्ती' कोई, 'मुफ़्त' में पिये फिरते हैं I

किरदार जानदार हो न हो, बुत शानदार दिखे,
'सूती' अंगिया में 'रेशमी' पैबंद सिये फिरते हैं I

'अंधा' माने या की 'सूरज', क्या दिया दिखाना,
नाउम्मीदी ओढ़े इस ओर पीठ किये फिरते हैं I

जो चाहते तो रोशन कर सकते थे रात को,
हारकर, अब वो दिन में बनकर दिये फिरते हैं I

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