मुझे जितना भी उल्लू बनाइए, मुझे सदियों तक भी सताइए,
जहां चाहे अंगूठा लगवाइए, जहां चाहे जुलूस निकलवाइये,
मैं तो बस एक अंधभक्त हूं, मुझे और न कुछ भी चाहिए।
मेरी आंखों पे पट्टी बंधी, नज़रें भगवन तेरे चरणों पे सधी,
मेरे पास न और कोई काम है, मेरा कोई भविष्य ही नहींं,
जितना जी चाहे दुत्कारिए, मुझे और न कुछ भी चाहिए।
तेरी गालियां भी उपदेश हैं, लगे मिसरी सी बातें तेरी,
महंगाई से मुझे लेना भी क्या, इज़्ज़त मुझे भाती नहीं,
मेरा मत भी तेरा वोट है, मुझे और न कुछ भी चाहिए।
मेरे घर में मुफ़्ती का रहे राज, चीनी, चावल, मुफ़्त में अनाज,
मैं ८० करोड़ का हिस्सा हूं, मेरे सामने तेरी क्या बिसात,
बेरोज़गारी की पेंशन भी मिले अगर, मुझे और न कुछ भी चाहिए।
मेरी हड्डियां ३०७ हैं, एक रीढ़ ही कम है तो क्या बात है,
मेरा दिल भी धड़कता ही नहीं, क्योंकि अंधभक्ति मेरी ज़ात है,
मैं सिर उठाकर न कभी चल सकूं, मुझे और न कुछ भी चाहिए।
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