अशोक आजाद पंछी   (अशोक 'आजाद पंछी')
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Joined 18 January 2018


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149.
Feel of the heart couldn't say
Wounds of avoidance always lay
What's the matter how we are
Leave all this in it's own way

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146.
मेरे हिस्से में जाने क्यूं वो होना नही चाहता
मुहोब्बत है कि गुरूर मुझे खोना नहीं चाहता 
और चाहता है मुझसे वो फूल इश्क़ के पाना
अपने दिल में बीज जो बोना नही चाहता।

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हर घड़ी फोन पर नजर वो रखती है
जैसे इंतजार किसी के आने का 
मुझसे जुदा वो क्या हुआ 
बदल गया मिजाज़ उसके बतलाने का

मुझे हर घड़ी इग्नोर ही किया करती थी
अब मिला है शायद उसे उसके ढंग का
अब इंतजार वो किया करती है 
एक मैसेज करके रिप्लाई आने का

हाथो में फोन को रखकर बेचैनी दिखलाती है
करती है दीदार वो शायद उसका
लेकिन उसकी बेचैनी बतलाती है
इंतज़ार है उसे कोई मैसेज आने का

पहले डर था उसके खोने का
अब दिल में वो भी ना रहा 
खामोशी लेकिज उसकी ये बतलाती है 
मलाल है उसको मुझसे बिछड़ जाने का।

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उसके हिस्से में नाम मेरा option सा रहता है 
मेरे दिल में लेकिन वो Caption सा रहता है 
जाने कब 'अशोक' मेरे लिए वफादार वो होगा
फिलहाल दिल में उसके corruption सा रहता है।

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मैं चराग़ो को रोशनी दिया करता था कभी
मेरे हिस्से में ही अब अंधकार क्यूं हैं ?

 मैने तो कभी किसी का दिल नहीं तोड़ा
मेरे हिस्से में ही दर्द बेसुमार क्यूं है ?

मैं ठहरा रहता था उसके आने की आस में 
अब मेरे हिस्से में ही इंतजार क्यूं हैं?

जिसने कभी एक पल को मेरा ख्याल न पाया
उसके लिए ही मुझमे ख़ुमार क्यूं है?

हर किसी के दर्द e दिल का हाल समझा मैं
फिर मेरे हिस्से में ही बुखार क्यूं है ?

हुआ करता था दिल ये 'आजाद पंछी' मेरा कभी
आज फिर इस पर वो शुमार क्यूं है?

ग़म औरों के हमेशा ख़ुद पर ही लेता आया था
फिर आज दिल तेरा ही बीमार क्यूं है?




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144.
ऐ ख़ुदा छूटे ना कभी यूं बेवजह नमाज़ उसकी,

या तो मिल जाए ख़ुदा या उसे महबूब मिले।

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143.
उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता मेरे होने ना होने से

आसमां है वो उसे क्या पंछी के होने ना होने से।


मैं जागा हूं कई रातों तक उसका झूठ सोचकर 

जिसे कुछ फर्क नहीं पड़ता मेरे सोने ना सोने से।


चैन सुकून नींद तमाम रो कर सब बहा डाला

उसे कुछ फर्क नहीं पड़ता मेरे रोने ना रोने से।


उगने नहीं देता महोब्बत के बीज वो दिल में

फिर फायदा होने ही क्या मेरे बोने ना बोने से।


एक तू है अशोक जो उसे खोने से डरता है 

जिसे फर्क नहीं पड़ता तुझे खोने ना खोने से।
To be continued...

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142.
आह ! ये बरसात 
फिर तेरा साथ
बूंदों से बात
हाथों में हाथ
भीगे जज़्बात 
आंखो में आंख
अनकही सी बात
हां ये बरसात....
हमारी मुलाकात
रुके ना बरसात 
छूटे ना साथ
रुके ना बात
बिखरे न जज़्बात 
रहे बस साथ
भीगे हम साथ
महके जज़्बात 
हां ये बरसात....



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141.
गुजरे हुए वक्त सा हूं ए आसमां मैं 
मुझे जैसा पंछी फिर न पाओगे।

न होने से मेरे तुम्हे क्या फर्क पड़ता है 
लेकिन खोकर तुम मुझे फिर न पाओगे।

बेशक एक छोर का दरिया मैं रहा
पर मेरे जैसा सफर फिर न पाओगे।

बात और है कि तू मेरे हिस्से न रहा
गर हिस्से से मैं गया फिर न पाओगे।

जो वक्त था मेरा आज और का हुआ
मेरे जैसा वक्त दे कोई फिर न पाओगे।

जज़्बात मेरे दिल के जो मर से गए
बयां कर सके वो जुबां फिर न पाओगे।

तेरी याद का बना मैं ताबीज रखता था
जो याद करे मेरी तरह ऐसा न पाओगे।

जा चुके छोड़कर तो बेशक चले जाओ
मुझ जैसा अब पत्थर शख्स न पाओगे।

दिल में मेरे चाहते तेरी दफन जो हैं 
मुझे जैसी कोई जिंदा कब्र न पाओगे।
- अशोक 'आजाद पंछी '





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140.
नही होता यहां आसान किसी दिल को पढ़ पाना

नही होता यहां हमसे झूठी बातों को गढ़ पाना

पसंद करते हैं आजकल मुखौटे लोग दिलों पर भी

नही आता यहां हमको सोने में दिल को मढ पाना।

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