सही वक़्त पर वक़्त ने अपना रूख़ बदल लिया वरना आज उनके दिल भी उदास रह जाते जिन्हें मेरे आने की खबर सुनते ही मायूस होना पड़ता..
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मेरा लहज़ा मेरी माँ के संस्कारों की वजह है,
वरना पापा ने तो दुनियाँ को तौलना सिखाया है...-
मत तलाशा करो मेरा वजूद हर जगह कभी कभी मैं कहीं भी नहीं होती हूँ..
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करने आउंगी दीदार एक बार तेरे शहर का,
सुना है तेरे शहर की चकाचौंध लोगों को
अपना बना लेती है..-
बड़ा गहरा ताल्लुक़ है मेरी ज़िन्दगी का दर्द से,
जिसपर फुर्सत का मरहम कभी असर ही नहीं करता..
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हाल अच्छा भी नहीं हैं हालात बुरे भी नहीं हैं,
बस अच्छा कुछ लग नहीं रहा और बुरा कुछ भी नहीं है...-
कुछ आज़ाद परिंदों को वक़्त ने एक रोज़ कैद कर दिया,
छटपटाहट भरे दिल फिर उड़ न सके और मोहब्बत कर बैठे उस कैदखाने से,
वक़्त तेजी से भागा और फिर उसी मोड़ पर लाकर खड़ा किया जहाँ से सबका अपना अपना आसमान था,
लेकिन किसी के पास उडा़न भरने का हौसला नहीं था, दायरे की उड़ान थी आजादी की नहीं
उड़ना तो था ही,.. एक एक करके सब उड़ते गए बिछड़ते गए....
और पहुंच गए फिर एक नए आशियाने की कैद में.....
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मेरी ख़ामोशी से ज्यादा परहेज़ मत करना,
ये जब टूटती है न तो ख़ुदा कसम,
कतरा- कतरा ज़हर लगता है लोगों को..-
सबकुछ समेट लेने को जी चाहता है,
जी भर के रोने को जी चाहता है,
ये कैसा वक़्त खड़ा है आज दरवाजे पर,
जिन्हें पसंद नहीं किया उन्हीं के साथ रहने को जी चाहता है..
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जा रहें हैं एक बार फिर एक आशियाने को छोड़कर,
हम फौजियों का कोई ठिकाना नहीं होता..-