कुछ आज़ाद परिंदों को वक़्त ने एक रोज़ कैद कर दिया,
छटपटाहट भरे दिल फिर उड़ न सके और मोहब्बत कर बैठे उस कैदखाने से,
वक़्त तेजी से भागा और फिर उसी मोड़ पर लाकर खड़ा किया जहाँ से सबका अपना अपना आसमान था,
लेकिन किसी के पास उडा़न भरने का हौसला नहीं था, दायरे की उड़ान थी आजादी की नहीं
उड़ना तो था ही,.. एक एक करके सब उड़ते गए बिछड़ते गए....
और पहुंच गए फिर एक नए आशियाने की कैद में.....
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