जो कुछ मिला वो कम न था
दर्द हुआ मगर वो गम न था
कोशिश की जख़्म भरने की
मरहम सा था वो मरहम न था
भूल हूई उनको समझने में हमसे
कुछ तो था वो सिर्फ वहम न था
मसरूफ हुए बेपरवाह इस कदर
ख़ुद-दारी जो थी अहम न था
चट्टान है या फिर कोई पत्थर
क्या उसका दिल दहल न था-
पसीने की धार से जब तक जार जार ना हो जाए
चाय पीने का मजा तब तक दिल के पार ना हो पाए-
ना गम है किसी बात का ना ख़ुशी हो रही है..
ना जाने यह कैसी अजीब ज़िंदगी हो रही है..-
धुंआ-धुंआ सी क्यों हो रही है ज़िंदगी..
पल-पल यूँ करवट बदल रही है ज़िंदगी..
कल तक जो थी ख्वाहिशों में फँसी
अब तो हर साँस में बसी है ज़िंदगी..
कट रही थी तो काट रहें थे, जाने-अंजाने में
'खुली आँखों' से अनूठी दिखने लगी है जिंदगी..
कुछ गलतियों ने इस कदर झींझोड़ा हमें
दिन-ब-दिन तरमीम में जुट पड़ी है ज़िंदगी..
जमकर खातिरदारी होगी, आकर तो देख ऐ मौत
तुझे कस्स के गले लगा लेगी मेरी यह ज़िंदगी..-
ज़िंदगी को कुछ इस तरह से जी रहा हूँ.. 🌱
मौत भी आई तो कस्स के गले लगा लूँगा.. ❤️🙌🏽-
मुरझाए पौधों की सारी
तकलिफें 'जान' लेता है..
पतझड़ का मौसम है ज़नाब
सब्र का इम्तिहान लेता है..-
भरी आँखों में ख़्वाब लेके बैठे है..
'रोटी' के साथ 'चाँद' लेके बैठे है..
हमने रास्तों को नही छोड़ा कभी
अपना 'मुकद्दर' हाथ लेके बैठे है..-
ढलती हुई शामों को बहुत देख लिया अशोक..
सूरज उगने से पहले आँखों को चमकता देखना है अब!-
तकलीफ़ देती है, वह आपकी राय है..
मुझे इश्क़ है उस्से, वोह मेरी 'चाय' है..-
ठंडे-ठंडे मौसम में चुपचाप सी क्यों बैठी है..?
ओए मेरी गरम 'चाय', मुझ से क्यों रूठी है..?-