ASHKAR   (The_heartt_thoughts")
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Joined 17 September 2018


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Joined 17 September 2018
YESTERDAY AT 13:16

जब भी मुझसे कोई पूछता मैं क्या काम करती हूँ तो मैं बहुत ख़ुशी और गर्व के साथ कहती हूँ Proofreading। जो कि मेरा अब तक सबसे मनपसंद काम रहा है।
लेकिन लोगों के मन में ये सवाल रह जाता है ये कैसा काम है? क्या फ़ायदा इसका? क्या ही मिल जाएगा इससे? ये ऑनलाइन काम ये सब एक टाइम पास है।

पर सच कहूँ तो जो लोग बड़े-बड़े प्रचलित लेखकों की किताब ख़रीदकर, उन्हें अपनी अलमारी में शौकिया तौर पर जमा लेते और उन्हें कभी-कभी पढ़ते हैं और कुछ बातों को ही समझ पाते हैं। और कुछ बातों को पढ़कर ऐसे भूल जाते हैं जैसे कभी पढ़ी ना हो। मैं ये नहीं कहती प्रचलित या भूतपूर्व लेखकों का लेखन उतना अच्छा नहीं या उन्हें पढ़ना मुझे पसंद नहीं। उनके लिखी बातें ना जाने कितनी बार दिल और दिमाग को छू जाती है मगर वर्तमान की बातें, हर क्षेत्र, हर शहर, हर इंसान के दिल की बातें और वर्तमान में आम ज़िंदगी को समझने के लिए एक आम से लेखक के आम से लेखन को खास बनाना भी अलग अनुभव है। मुझे याद रहती है मगर बड़े लेखकों की कुछ कहानियाँ भी और ज़्यादातर आम से इंसान की आम सी ज़िंदगी की आम सी बातें लेकिन सबसे ज़्यादा सीखने और जीवन को सही दिशा देने के लिए तैयारी के लिए।

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13 JUL AT 12:42

भागते हैं.......

भागते हैं जीवनभर मुश्किलों से,
भागते हैं बुरे समय से, दुःखों से
सच्चाई से, दुनिया से, लोगों से,
परिक्षाओं से, उनके परिणामों से,
इस डर से कि हमें लड़ना पड़ेगा,
सहना पड़ेगा, संघर्ष करना होगा,
असफलताओं की पीड़ा को हँसते
हुए स्वीकार करना तो पड़ेगा मगर
अंत में हमें ना चाहते हुए भी लड़ना,
सहना, दुःखों के साथ चलना पड़ता है।
चाहे मुस्कुराते हुए चले या दुःख को
महसूस करके ईश्वर को, भाग्य को
जीवन को और अपने आसपास के
लोगों को कोसते हुए लेकिन चलना,
लड़ना, हारना, सहना तो पड़ता है।

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9 JUL AT 1:14

कितना अजीब है ना,
तन्हा रहने पर ना जाने
कितनी बातें ज़हन में आती है।
सोचते हैं वक़्त मिलेगा तब
हम सारी बातें कर लेंगे।
ना जाने कितनी बार वक़्त
मिला ना जाने कितनी बार
हम बातें करना भूल गए।
कभी-कभी तो वक़्त होता है
बातें नहीं सिर्फ़ ख़ामोशी रहती,
कभी-कभी बातें तो होती है
मगर वक़्त किसी के पास नहीं।
कभी-कभी वक़्त और बातें
दोनों होता है मगर सुनने वाला
सुनना ही नहीं चाहता।
कितना अजीब है ना कहना तो
बहुत कुछ है मगर वक़्त नहीं है।

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19 JUN AT 0:36

कृष्ण को राधा ने हर रूप में पहचाना भी
हर रूप में स्वीकारा भी।
कृष्ण के हिस्से में आए विरह को सबने
जाना भी और माना भी।
मगर क्या जान पाया कोई राधा के हिस्से
की पीड़ा?
क्या कोई समझ पाया ये कि राधा के हिस्से
केवल विरह नहीं आया,
आया बँटवारा प्रेम का, अपने प्रिय का,
अपने कृष्ण का।
उसके हिस्से में आयी केवल प्रतीक्षा
और 16108 रानियाँ।
क्या कोई जान पाया कभी कि राधा का
अर्थ ही प्रेम क्यों है?
क्योंकि राधा ने कृष्ण से निःस्वार्थ और
पूर्ण रूप से समर्पित होकर प्रेम किया।

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6 JUN AT 0:09

कुछ लोग होठों से और
कुछ लोग आँखों से मुझसे
सिर्फ़ यही सवाल करते हैं,
सब्र और इतना सब्र
आया तो आया कहाँ से?
कहने को तो कह दूँ जवाब में
ना जाने कितनी मुश्किलों को
तन्हा ही सम्भाला है।
ना जाने कितने दुःखों को भी
अकेले ही तो समेटा हैं।
मैंने बिखरे हुए अश्कों को भी
मुस्कुराहट में बदला है।
और ख़ुदा से भी तो दुआओं
में सिर्फ़ सब्र माँगा हैं।

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27 MAY AT 16:17

मैं वक़्त की परवाज़ को,
और क़िस्मत के असरात को
बदलने का हुनर रखती हूँ।
मुझे ख़ौफज़दा करने वाले ख़्वाबों
की ताबीर बदलना मैं जानती हूँ।
अपनी ख़्वाहिशों की मंज़िलों को पा
लेने का जुनून भी तो मैं रखती हूँ।
मगर इन सबके बाद भी मुझे चाहिए
"मोहब्बत" तुम्हारी मोहब्बत, वफ़ा,
तुम्हारा साथ और तुम सिर्फ़ तुम,
तुम्हारे लिए क़िस्मत का लिखा
बदलना चाहती हूँ,
ख़ुदा से तुम्हें माँगने के लिए
मन्नतों के धागे बाँधना चाहती हूँ।
तुम्हारे साथ जीने के लिए रोज़े,
नामाज़े, दुआएँ, प्रार्थनाएँ, व्रत
और ख़ुदा तक ले जाने वाले हर दर
पर जाकर तुम्हें माँगना चाहती हूँ।

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21 MAY AT 0:32

मैं लिखूँ "मोहब्बत" बग़ैर उसके नाम के
तो मोहब्बत ही अधूरी।
मैं सोचूँ "मोहब्बत" बग़ैर उसके एहसास के
तो मोहब्बत ही अधूरी।
मैं सुनूँ "मोहब्बत" बग़ैर उसकी आवाज़ के
तो मोहब्बत ही अधूरी।
मैं देखूँ "मोहब्बत" बग़ैर उसके वजूद के
तो मोहब्बत ही अधूरी।
मैं कहूँ "मोहब्बत" बग़ैर उसके ज़िक्र के
तो मोहब्बत ही अधूरी।
मैं गाऊँ "मोहब्बत" बग़ैर उसके तारीफ़ के
तो मोहब्बत ही अधूरी।
मैं समझूँ "मोहब्बत" बग़ैर उसके जज़्बात के
तो मोहब्बत ही अधूरी।
मैं करूँ "मोहब्बत" बग़ैर उसकी मोहब्बत के
तो मोहब्बत ही अधूरी।

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1 MAY AT 2:16

ना जाने क्यों उसकी आँखों का एक आँसू भी मुझे इतना चुभता है,
उसके चेहरे पर धीमी मुस्कुराहट के साथ ख़ामोश चेहरा भी
मुझे दिखता है।
उसकी छोटी सी परेशानी हो या उसके चेहरे पर लिखा
ग़म हो सब कुछ मुझे दिखता है,
ग़म, दर्द, तकलीफ़ उसका रूठना हो या समेटना ख़ुद को,
जिसे छुपाना चाहता हो अपनी ख़ूबसूरत मुस्कुराहट और प्यारी बातों के पीछे,
मुझे ख़बर होती है सब, महसूस होता हैं सब और मुझे उसका चेहरा सब कह देता है।

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29 APR AT 19:06

कुछ ख़्वाब मैंने देखे खुली आँखों से।
कुछ ख़्वाब देखे नींद में डूबी आँखों से।
कुछ ख़्वाब जिन्हें पूरा करने की ख़्वाहिश हैं।
कुछ ख़्वाब जो ज़हन को ख़ौफ़जदा करते हैं।

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29 APR AT 18:58

मुझे डर लगता है इन धूल भरी हवाओं से,
आँधियों से, तूफ़ानों से,
लगता है जैसे लूट ले जाएँगे ये मेरा भरम
मेरा ज़र्फ साथ अपने।

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