Ashish Yadav   (Ashish yadav)
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Poet
lyrics writer,
guitarist
Writer
Instagram-@aapki__kalam
Joined 18 November 2018


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12 APR 2022 AT 19:30

शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे
Rahat Indori

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12 APR 2022 AT 18:30

शायद मुझे किसी से मोहब्बत नहीं हुई
लेकिन यक़ीन सब को दिलाता रहा हूँ मैं
Jaun Elia

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12 APR 2022 AT 14:45

मोहब्बत रही चार दिन ज़िंदगी में

रहा चार दिन का असर ज़िंदगी भर

अनवर शऊर

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11 APR 2022 AT 7:57

दया अगर लिखने बैठूं
होते हैं अनुवादित राम
रावण को भी नमन किया
ऐसे थे मर्यादित राम

~अज़हर इक़बाल

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9 APR 2022 AT 20:35

तुम क्या जानो तन्हा कैसे जीते हैं
दीवारों से सर टकराना पड़ता है

-राहत इंदौरी

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9 APR 2022 AT 20:31

सौ में से नब्बे शोषित हैं शोषितों ने ललकारा है
धन धरती और राजपाठ में नब्बे भाग हमारा है!!

-जगदेव प्रसाद

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9 APR 2022 AT 20:25

अब के हम बिछड़े तो शायद
कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल
किताबों में मिलें
- अहमद फ़राज

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28 MAY 2020 AT 16:03

..

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18 APR 2020 AT 12:00

तुम बिलकुल मौसम की तरह हो मुझे हर वक़्त अच्छी लगती हो ..

तुम्हारे साथ रहना हो या तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारी चैट्स को अपनी सबसे पसंदीदा किताब की तरह उलटना-पलटना इन दिनों सब अच्छा लगता है
पहले बेहद दूर और थकाने वाला कमरे से कोचिंग तक का वो रास्ता अब आसान हो गया है
गलियों से रिक्शा तक का सफ़र और रिक्शा से यूनिवर्सिटी तक का सफ़र तुमसे बात करते हुए और इयरफ़ोन को कानों में एडजस्ट करते हुए कब निकल जाता है कुछ पता नहीं चलता।
फ़ोन को साइलेंट पर कर के घोड़े बेच के सोने वाली आदत में थोड़ा बदलाव हुआ है क्यूँकि किसी ने कहा था कि "किसी का फ़ोन ना उठाना अच्छी बात नहीं होती"
तुम्हारे आने से कई और बदलाव भी हुए हैं मुझमें भी और शायद तुम भी बदल गयी थोड़ा थोड़ा ।
टपरी की चाय और चौराहे के सिगरेट से रेस्टोरेंट की सभ्य स्मूदी और पनीर टिक्का तक का सफ़र थोड़ा मुश्किल था लेकिन तय कर लिया मैंने ।
करता भी क्यूँ ना तुमने भी तो रेस्टोरेंट से चौराहे वाली चाय तक का सफ़र तय किया ही है ।
कमरे को थोड़ा साफ रखना आ गया और हाँ तुम्हारे आने से ठीक पहले सबकुछ ठीक करना भी आ गया ... हाँ वो अलग बात है की तुमको फिर भी कुछ ठीक नहीं लगता
लेकिन सुनो.…... तुम आयी
मतलब बहोत कुछ आ गया ...

#आशीष

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12 APR 2020 AT 16:19

ख्याल ख्वाब यादें ये तो है बहाना
ग़ालिब हमने तो सीखा है
गमों में मुस्कुराना

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