तुम दिन कहो, मैं प्रकाश लिखूंगा!
तुम रात कहो, मैं चांद लिखूंगा!
तुम गर्मी कहो, मैं दोपहरी का आग लिखूंगा!
तुम सर्दी कहो, मैं ठिठुरन का विराग लिखूंगा!
तुम न्याय कहो, मैं नया संसार लिखूंगा!
तुम अन्याय कहो, मैं दबे कुचलों का चित्कार लिखूंगा!
तुम सुख कहो, मैं समस्त विश्व में आनंद लिखूंगा!
तुम दुःख कहो, मैं लोभ और घमंड लिखूंगा!
तुम धर्म कहो, मैं परोपकार और ईमान लिखूंगा!
तुम कर्म कहो, मैं प्राणियों का कल्याण लिखूंगा!
तुम शब्द कहो, मैं जन-मन में संचार लिखूंगा!
तुम कविता कहो, मैं शब्दों का संसार लिखूंगा!
#WorldPoetryDay #21stMarch2021-
From madhubani,bihar
Student @ Sri Venkateshwar... read more
There are two types of tired people, one that requires rest and other one that requires peace. Physical rest and mental peace is necessary for emotional well-being. But no one gets rest and peace together. If someone gets this together, then they are declared dead in the eyes of world. And that's the philosophy of life.
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।। हास्य दोहा ।।
दिन बीते, फिर साल बीते, हो गए सब काफूर!
पर हम कुछ किए नहीं, बस खाए और सोए भरपूर..-
"ये जिंदगी"
कोई नहीं देता किसी को रास्ता..
खुद को कुचलकर आगे बढ़ना पड़ता है!
हर एक क्षण संघर्षों से है दबा..
पर फिर भी मुस्कुराना पड़ता है!
मंजिल पाने को बेताब रहते हैं हम..
पर फिर भी सफ़र ज्यादा सुहाना लगता है!
यही तो रीत है इस दुनिया कि..
जहां हर वो अपना, पीठ पीछे बेगाना लगता है!
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लहरों से बाढ़...
कविता कैप्शन में पढ़ें।
(नोट:- बहुत दिन पहले शाम में मैंने इसे लिखा था, उस दिन मुझे लगा था कि इस कविता में कुछ पंक्ति और जोड़ा जाए... परन्तु आज इसके बारे में ख्याल आया तो आज वैसे पंक्तियों को सोचने की मन- स्थिति बन नहीं पा रही है।😂😂)-
(दो पक्ष)
अयोध्या में है उत्सव की तैयारी
रामलला की मंदिर है बनने को अाई
सदियों तपस्या के बाद हमने यह दिन है पाई।
परन्तु....
मां जानकी कि भूमि है फिर से मुरझाई
उफनती नदियों का है सैलाब जो अाई
न कोई राहत न ही कोई सरकारी कारवाई
न ही किसी मीडिया ने रोज स्पेशल रिपोर्ट है दिखाई।
डूब चुका है सबकुछ. कौन करेगा अब भरपाई?
..........
एक समाज के दो पहलू की यही है सच्चाई..
कहीं रोटी-छत के लिए संघर्ष तो कहीं संपत्ति है छाई।
कहीं अस्पताल तोड़ रहे दम तो कहीं मंदिर मस्जिद बनाने की है बारी अाई।
संघर्षों से भरी पड़ी है, जीवन की लड़ाई।
अतः मंदिर निर्माण की बेला पर, मिथिलावासियों ने भी है मुसकाई।
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जब हम मुस्कुराने लगे.
क्या तकलीफें,क्या परेशानियां
देखकर मुझे शर्माने लगे.
मैंने भी कह दिया..
तू शर्म कर, पर साथ न छोड़ना
तुझे देखकर ही तो मुस्काने की याद आती है।-