आंगन में अब धूप उदास सी बिखरी ,
माँ की थपकी की यादें हैं सिकुड़ी ।
कभी गूँजती थीं हँसी की फुलझड़िया ,
अब साये में बसी हुई तन्हाई है ठहरी ।
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हिन्दी की गंगा , बहे अनघट धार ,
कवियों के स्वर में , बसता है संसार ।
हरिवंश की मधुशाला , मधुर रस घोल ,
निशा निमंत्रण में , सपनों का मोल ।-
हिन्दी हमारी धरोहर , आत्मा का गान ,
हर शब्द में बसता , भारत का सम्मान ।
चलो मिलकर गाएँ , इस भाषा का राग ,
सर्वदा प्रज्वलित रहे , राष्ट्रभाषा महायाग ।
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कुमार विश्वास की अमावस की रात ,
ज्योत जलाए , हिन्दी की अनहद बात ।
साहित्य का सागर , लहराए हर छोर ,
हिन्दी दिवस पर , कवियों का गर्वित भोर ।
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मैं तेनू फिर मिलांगी , अमृता का प्रेमागम ,
नीरज की थरथराती लौ और कांपता तम ।
कुँवर की चाक गढ़े , भाषा का आधार ,
माखनलाल की रचना , रस रुप राग धमार ।-
दुष्यंत की पीर पर्वत-सी, पिघलने को तैयार ,
हर शब्द में बसता, जन-गण-मन का संसार ।
अटल का कदंब का पेड़, छाँव देता सदा ,
कौन यहाँ अपना है, पूछे मन का मथा ।-
दिनकर की रश्मिरथी, वीर रस की धार ,
कुरुक्षेत्र में गूँजे, युद्ध का हुंकार ।
उर्वशी का प्रेम, रेणुका का बलिदान ,
हिन्दी के कण-कण में, जागे नव उत्थान ।-
गुप्त के साकेत में, श्रीराम का आदर्श ,
यशोधरा की पीर, भारत भारती हर्ष ।
सिद्धराज सा गर्व, हिन्दी का सम्मान ,
कविता की हर पंक्ति, देश का अभिमान ।
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निराला का कुकुरमुत्ता, सादगी का रूप ,
सरोज स्मृति में, बिखरा दर्द का धूप ।
त्रिपथगा की गंगा, अनामिका का भाव ,
हिन्दी साहित्य में, उनका अमर प्रभाव ।-
पंत के पल्लव में, प्रकृति का रंग ,
कला और बूढा चाँद, जागे मन के संग ।
चिदंबरा की गहराई, गुंजन का स्वर ,
हिन्दी की आत्मा, बनी साहित्य का घर ।-