हम भी तड़पे थे तुम भी तड़पोगे,
कर्म है माता-पिता थोड़ी जो हर गुनाह माफ़ करे।-
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत,
अभ्युथानम् अधर्मस्य तदात्मानं सृजा... read more
बस वफ़ा ही तो नहीं मिली इश्क़ में हमे वरना,
मोहब्बत तो तुझसे बेइंतेहा करी थी हमने।-
शिकवा तो तुझसे भी ताउम्र रहेगा ऐ ज़िंदगी..
कि जब सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी उसकी तब ही तूने उसे मुझसे छीना।-
जो मेरे साथ होकर भी मेरा ना था,
उसकी वफ़ादारी पर कैसा शक होता किसी और के लिए!-
बेशक नफ़रत का दरिया बनकर ही सही,
लेकिन आज भी तुम्हारे दिल में जिंदा तो हूँ।-
और अगर मिलों कभी अनजानी राह में कहीं किसी मोड़ पर तो,
इस क़दर तुमको बाहों में समेट लेंगे कि हर गलती और गुनाहों को भुला बैठोगे।-
और भूले भी क्यूँ हम तुझे और किस तरह से...!
सिर्फ़ मोहब्बत ही नहीं मेरी ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा रहा है तू।-
इतना भी फिक्रमंद नहीं होना था उसके लिए जिसके लिए दुनिया से खुदगर्ज़ हो बैठे,
वो हमारी नफ़रत के भी क़ाबिल नहीं थी जिससे हम बेइंतेहा मोहब्बत कर बैठे।-
कुछ इस क़दर पूरा उनका वो इश्क़ हुआ,
अधूरा हुआ हमसे और किसी और से अधूरा हुआ।-