गहरी नींद में सोए हैं, हम सभी यहां पर खोए हैं
बेमतलब की उलझनों में, सर से पांव डुबोए हैं
खुशी में छुप कर रोए हैं, तो दुःख में मोती बोए हैं
पहन मुखौटा खुद ही फिर, मन के भाव को धोए हैं
गहरी नींद में सोए हैं........-
यहां कौन किसकी सुनता है?
भीड़ में सब अकेले चलते हैं,
चेहरों पर नक़ाब से पलते हैं
किसी के आंसू कोई पढ़ता नहीं,
हर कोई बस अपनी कहता है वहीं
दिल की बातें सबको बोझ सी लगती हैं,
सबको अपनी ही फ़िक्र सता रही है
सुनना अब किसी की कला नहीं रही,
बस 'ओके' और 'हम्म' की आदत बना रही है
अगर वक्त मिले तो ज़रा रुक कर सुनो,
बिना राय दिए किसी का दर्द चुनो
कभी किसी की खामोशी भी पुकार होती है,
उसे सुनना भी एक समझदार दुआ होती है
-
कल क्या होगा किसी को पता नहीं होता
गर होता तो, जो होना था वो हुआ नहीं होता
फिर होने न होने की कश्मकश में साथी
जो आज जीया, वो उस तरह से जीया न होता
कल क्या होगा किसी को पता नहीं होता ....-
आज सभी को भा रहा है, सिर्फ काम और काम
हर मानव का हो रहा, अब रोबोटिक अंज़ाम
मन में रही न भावना, मुख पर न मुस्कान
ये तो मानव की नहीं, है रोबोटों की शान
अपनी सुविधा देखकर, बना लिए रोबोट
रोबोटों से खाएगा, एक दिन मानव चोट
इस विकसित संसार में, जारी अंधी दौड़
हथियारों के साथ ही, रोबोटों की होड़
फूल अकेले हैं नहीं, इनके संग हैं शूल
कांटे ज्यादा चुन लिए, ये है मानव की भूल
-
दुनिया के रंग ढंग में
तुम्हें लगता है बहुत निखर गए हो
आईने में ज़रा देखो खुद को
तुम खुद से कितना बिछड़ गए हो
एक सुकून की खातिर
पूरी दुनिया से जो कर ली है यारी
अंदर से तो देखो खुद को
तन्हा होकर पल पल बिखर रहे हो-
नहीं किसी से बैर करो, नहीं किसी से आस
खुद के लिए संघर्ष करो, जीवन होगा खास-
मैं पुरुष हूं, मर्दानगी की सूली पर चढ़ा हूं
कठोर हूं, निर्मम हूं, निर्भय हूं, बस इसी तरह गढ़ा हूं
मैं पुरुष हूं , मैं खारिज़ भी किया गया हूं
कभी नालायक, कभी निकम्मा, कभी नाकाबिल बताया गया हूं
मैं पुरुष हूं, दर्द से मेरा क्या रिश्ता
मैं पत्थर हूं, आंसुओं से मेरा क्या वास्ता
मगर सच तो ये है कि, मैं भी रुलाया गया हूं
मुझमें भी हैं परतें, मुझमें भी पानी बहता है
खोल सकोगे जो परतें मेरी तो देखोगे
मुझमें भी सैलाब रहता है
मैं पुरुष हूं
जब भी किसी गलत को गलत कहता हूं
तो अपने ही घर में ज़ालिम क़रार दिया जाता हूं
मैं पुरुष हूं, ऐसे ही दबा दिया जाता हूं।
-
सृजन, संवेदन और समर्पण की ये मिसाल कहलाती है
रिश्तों को अपनाकर,स्त्री प्रेम और धैर्य से उन्हें सजाती है-
जब भी मैं लिखने बैठूं, काश मैं इक काश हो जाऊं
एक कहानी और कहूं, या कुछ अधूरा लिख जाऊं-
दिल नाउम्मीद तो नहीं, बस नाकाम ही तो है
लंबी है ग़म की शाम, मग़र शाम ही तो है-