उन गलियो से हम अब शायद गुजर न पाए।
कही उन गलियो को हमारी याद न सताए।।
उन घरो मे रहने वाले तो पत्थर हो गए।
जहाँ रुबरु होते ही मन की कलियाँ खिल जाती थी।।-
अवसर आने पर अपना असर दिखाती है।
जिन्दगी भी कभी कभी अपनी औकात दिखाती है।।-
हम तो हर्गिज कातिल न थे।
उनकी निगाहो ने हमे कातिल बना दिया।।
जाम जब हमने उनकी निगाहो से पिया।
हम क्या करते जो हमरी निगाहो ने किया।।-
मन्द प्रकाश मे तुम्हारा रिमझिम बरसना।
मानो लगता है शीतल जल से धरती की प्यास बुझ्ना-
कभी जीवन की किताब पलटा करो दोस्तो।
वहाँ दम तोडती रिश्तो की छाव
विश्राम करती मिलेगी।।-
सुन्दरता और काँटो का क्या रिश्ता है।
ये तो मैने फूलो से ही सीखा है।।-
ना आजमाओ खुद को
हकीकत के आईने मे।
यहां दर्द का जाम लिए।
सैकड़ो हजारो बैठे हैं।।-
वो फूल बहुत शर्मिंदा है।
काँटो के बीच भी जिन्दा है।।
वो मात्रभूमि पर चढ़ न पाया।
प्रेमिका के हाथो की शान बढाया।।-
जब किराए पर सांस खरीदना पड़ें।
दुआओ के साथ सब हो खड़े।।
विधाता के सामने हम मजबूर पड़े।
विश्वास कायम रह्ता है जब तक सांसो के
लाले न पड़े।।-