खंड खंड हिंदू
बटवारे में चाहे पीटते, धर्म के नाम पर जातियों में बटते,
सृजन कर्ता रचयिता ब्रम्हा के मुख से निकले ब्राहमण, भुजाओं से निकले क्षत्रिय, जांघों से निकले वैश्य और पैरों से निकले शूद्र|कहो तो हो सनातनी जातियों की शाखा, उपशाखा से अलग - अलग निकले ये हिंदू, रग रग हिंदू तन मन हिंदू, हार नहीं मानूँगा राह नयी ठानूगा, नीति की विधान पर कहते कृपाल पर, द्वेष, राग, भयमुक्त मन की शक्ति का प्रहार अभी बाकी है भाषा, धर्म, जाति पर उबले ये लोग अपने को कहें हिंदू, राष्ट्र की परिभाषा है नियति का विधान किसने देखा ब्रह्मा, विष्णु और महेश को सिर्फ कल्पना के आधार पर अडिग है हम विश्वास है हाँ यही तो पत्थर का भगवान है|
-