जिंदगी के कुछ कोरे पन्नों पर इश्तिहार लिख रहा हूँ,
मैं दफ़्तर में बैठा एक अखबार लिख रहा हूँ,
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इश्क़ करने का अब नया शौक क्यों पालिये?
जो पा लिए इश्क़ फिर क्यों बंदिशें डालिये,
अख़बार कि ख़बर हो तो बनी रहे !
आप आ एक बार नज़र तो डालिये ,
मुस्कुरा तेरी आवाज़ सुन अब भी खुश है,
ज़रा क़रीब आ फिर उसे जिंदगी में उतारिये,
एतराज़ किस बात का जब गुमान है इश्क़,
सौ-सौ गलतियों को अपने एहम से झाड़िये,
रोज़ रब के दर पर वो नज़र आता है,
शिकायतों का एक लिफ़ाफ़ा लाता है,
झोली उसकी उसने खाली रखी है,
जुबां पर सिर्फ एक मन्नत आधी रखी है,
पूरी होने मैं वो क़तराती है,
आधे इश्क़ कि चुभन उसे सताती है,
करवटों की ये नींद बिस्तर पर मायने नहीं रखती,
इश्क़ होता क्या है ये नज़रों से बतलाती है !
तकलीफ़ उसने होठों पर रख मुस्कुराना सीखा है,
अड़ियल है अपने घावों पर नमक लपेट यादों को ज़िंदा सीता है,
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हर एक इश्क़ को ना मापिए,
आप आकर जिस्म के पैमानें पर,
हम जिस्म बदल देंगें आशियाने में,
आपने मोहोब्बत होंठों से लगाई तो,-
चलो कुछ अफ़साने लिखते है,
चलो कुछ दीवाने लिखते है,
उन्हें शिक़ायत है कि हम लिखते क्यों हैं?
चलो शिकायतों के ख़त पुराने लिखते हैं !
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मैं निकला तो यादों की एक पोटली बाँध,
सर्द हवाओं के ख़्वाब ओढ़ निकल जाऊँगा,
चाँद के छुप जाने पर अँधेरे कि लालटेन काँधे पर टाँग,
लहूलुहान हथेली में ग़ुलाब ले बंजारा कहलाऊँगा,
बातों के धागों को यूं पहन अपने बदन पर,
मैं आसमा के पलकों पर आशियाना बनाऊँगा,
'मैं' रहूँगा यादों के संग, मैं रहूँगा बातों के संग,
जब भी मुड़ देखूँगा,तो परछाई को खुद गले लगाऊँगा,
घुटन में घुटा मैं अब घुटकर घुटना भी भूल जाऊँगा,
मैं आज मौन रह भीतर खुद से चिलाऊँगा,
पैमानों पर कौन इश्क़ किया है?
मैं मैख़ाने को पैमाना बनाऊँगा,
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आज लगता है बस हार अपनी मान लूँ,
जो ना ठाना था कभी उसी को ठान लूँ,
रास्तों पर काँटे चुभते है साँसों में,
गुलाब से जीवन को मौत मान लूँ,
तस्करी के लिए कोई किसीको ज़िम्मेदार क्यों कहे?
ज़िम्मेदारी मेरी थी उसके बेवफ़ा यार क्यों कहे?
ऊँचे बँगले, सकरी गलियाँ, और बहुत कुछ दिखता है मेरी नज़रों से,
सपनों में जिसे देखा अब कोई उसे संसार क्यों कहे?
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मैंने तुम्हारा नाम ज़िन्दगी में ,
एक खुशनुमा मौसम रखा है,
मेरे वक़्त के साथ-साथ,
तुम्हारा बदल जाना बिल्कुल लाज़मी है,
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अब तुम मुझसे यूँ रूठो ना,
होंठों को सी यूँ छूटो ना,
तुम शिकायत करने अब आओ तो,
वो गुस्सा मुझे वापस दिखाओ तो,
जिस पर कायल हो मीनारे,
उसकी एक ईंट मुझे बताओ तो,
सर्द हवाओं में यूँहीं बैठा हूँ,
लपट बन गालों पर एहसास दिलाओ तो,-
मेरी हर महफ़िल में तुम आ जाते हो,
मेरे नुक़्स निकाल मौजूदगी दर्ज कराते हो,
इतवार सी ख़ाली बेफ़िक्र रोज़ की ज़िंदगी मेरी,
उसमे सोमवार बन सारी हलचल मचाते हो,
ठंडे पानी से इन महीनों में नहाना बड़ा दुखता है,
तुम गुस्सा डाल मेरे ऊपर एक अलग आग लगाते हो,
समझी नासमझी की बातों में मुझे कुछ समझना कहाँ,
दो ग़ज़ जमीं चाहिए इश्क़ जमी करना कहाँ,
अब आओ तो मुझे बाहों में ले चूम लेना,
हर रात सलाखों में रह गुज़ारी है तुम्हारे बिना,
मेरा दर्द मुझसे जुदा नहीं,
एक इश्क़ ही है जो कहीं थमा नहीं,-
तुम मशरूफ़ हो उनसे बातों में,
हम मग़रूर है तुम्हारी यादों में,
तुम खुश हो शायद अब मुस्कुराने में,
हम आइना देखे तुमसे हिचकिचाने में,
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