Ashish Kumar Chaurasia  
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Joined 24 December 2017


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Joined 24 December 2017
12 AUG 2021 AT 20:21

खोजने निकला हूं तुझे एक अरसे के बाद,
उस पायल की खनक के पीछे भागा हूं हर बार,
तेरी खुशबू ना मिटा पाया हूँ मस्तिष्क से इक बार,
तुम बन गई हो अब पानी की बूंद रेगिस्तान के बाद,
सोचा है मिलकर तुझे माफीनामा दूंगा,
लंबी दूरियों के गिले-शिकवे मिटा दूंगा इस बार;
पर कल ही किसी शख्स ने कहा,
"अब तुम हो मेरे लिए मृगतृष्णा सी,
उस क्षितिज के पार।"

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12 AUG 2021 AT 20:00

मैं इस उम्मीद में डूबा कि तू बचा लेगा,
इसके बाद मेरा इम्तिहान क्या लेगा,
तेरे पास उम्र भर रहने की दुआ तो रोज की है मैंने,
क्या पता था कि तेरा समय कोई और चुरा लेगा।

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12 AUG 2021 AT 19:41

एक बेवफा ने हमारे गमों के खातिर,
हमें मरहम दिया;
उनके मरहम की कसम,
उनके जाने के बाद उस मरहम ने मार हमें दिया।

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12 AUG 2021 AT 18:50

हमने उनको दिल दिया;
और बदले में उन्होंने हमें;
दर्द-ए-दिल दिया।

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26 MAY 2021 AT 20:57

नाम बनते हैं रिस्क से,
और
पप्पू बनते हैं इश्क से।

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26 MAY 2021 AT 20:47

🙏🏻😇🙏🏻

नफ़रत को क्या चाहिए दो बातें काफी है,
मोहब्बत हर किसी के बस की बात नहीं।

💛❣️💛

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16 MAY 2021 AT 11:49

महीनों बाद दफ्तर आ रहे हैं,
हम एक सदमे से बाहर आ रहे हैं।

कहां सोया है चौकीदार मेरा,
ये कैसे लोग अंदर आ रहे हैं।

यही एक दिन बचा था देखने को,
उसे बस में बैठा कर आ रहे हैं।

डर तो तुझे भी लगता होगा, ऐ खुदा!
क्योंकि अब आशिकी के झूले में,
हमें भी चक्कर आ रहे हैं।।

- तहजीब हाफी

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15 MAY 2021 AT 18:47

वह चैन से सो रहे हैं सारा देश बेच कर,
कोई सुहाग बचा रहा है जेवर बेचकर।

मां-बाप ने उम्र गुजार दी घर संवारने में,
बच्चे उनकी सांसे खरीद रहे हैं महल बेचकर।

बर्बाद हो गए कई घर दवाई खरीदने में,
कुछ लोगों की तिजोरी भर गई ज़हर बेचकर।

बदनसीब लाचार गरीब थे जो तैरते मिले पानी में,
दो गज जमीन और लकड़ी के लिए हार गए घरवाले जवानी बेचकर।

इंसानियत की कमी तो पहले ही थी लोगों में,
जंग वे लोगों ने हमें हरा दिया जो खाए ईमान बेचकर।

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10 MAY 2021 AT 14:54

उदास एक मुझको ही वह कर नहीं जाता,
वो मुझसे रूठ के अपने घर नहीं जाता,
वो दिन गए कि मोहब्बत थी जान की बाजी,
किसी से अब कोई बिछड़े तो मर नहीं जाता।

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10 MAY 2021 AT 9:40

फैसला हो ही नहीं पाया बहुत बातों के बाद;
कौन खुलता है यहां, कितनी मुलाकातों के बाद।

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