इतना आसान नहीं " कृष्ण " हो जाना।।
एक गाली पर सर कलम कर देने का पुरूषार्थ होने के पश्चात भी सौ गालियाँ सुनने की क्षमता होनी चाहिए।।-
जीवन में आपने किया क्या ये ज्यादा मायने रखता है... read more
सब स्वस्थ रहें, सब मस्त रहें, हर सपना सबका सच्चा हो,
ये नया प्रकाश है जीवन में, नव वर्ष करे सब अच्छा हो।
नयी उम्मीदें, नया जोश, सत किरणें नव वर्ष भर देगा,
तुम सोचो जो निज माथे में, वो ईश्वर स्वयं ही कर देगा।
सोचो पथ, लिखो तकदीर, तुम खुद ही खुद के नेता हो,
तुम भविष्य हो आर्यवर्त का,तुम विश्व का भाग्य प्रणेता हो।।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।।-
वर्ष एक और घट गया जिन्दगी से,और लोग हैं की बधाईयाँ दे रहे हैं।
जीवन में जहर घोल रखा है जिसने, हम उन्हीं सितमगर को दवाईयाँ दे रहे हैं।
नया साल है तो क्या साथ वहीं पुराना चाहते हैं हम,
इन्हीं का हाथ है नीचे गिराने में मुझे जानते हैं मगर, ये पुराने दोस्त हैं इसीलिए मिठाईयाँ दे रहे हैं ।।
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चला है शिलशिला कैसा ये रातों को मनाने का,
तुम्हें हक दे दिया किसने दियों के दिल दुखाने का।
इरादा छोड़िये अपने हदों से दूर जाने का,
ये जमाना है जमाने की नजरों में ना आने का।।
कहाँ की दोस्ती किन दोस्तों की बात करते हो,
मियाँ दुश्मन नहीं मिलता अब तो ठिकाने का।
निगाहों में कोई दूसरा चेहरा तक नहीं आया,
भरोसा ही कुछ ऐसा था तुम्हारे लौट आने का।।
मैं ही था जो बचाके लौट आया खुद को किनारे तक,
समँदर ने तो बहुत मौका दिया था डूब जाने का।।
।।रिज़वी।।
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उस गली का एक दरवाजा हरदम खुला रहता, तो अच्छा था,
आते-जाते मैं सब कुछ देखा करता, तो अच्छा था।
कल देर रात उस घर की एक खिड़की खुली,
काश वो उसका कमरा होता, तो अच्छा था।।
इश्क़ में गुनाह है किसी को सताना,परेशान करना,
काश ये उसे भी पता होता तो अच्छा था।।।-
दिल में वफ़ा, होंठों पे मुस्कान और आँखों में अँगार रखते हैं,
इन खाली हाँथों में भी हम कई हथियार रखते हैं।
कटार लेकर आये हो मुझे मारने,ना-समझ हो तुम,
हथियार की जरूरत तुम्हे है तुम रखो,हम लब्ज़ों में धार रखते हैं।।-
कई साल आये!कई साल गये,अब इसको यूँ ना गँवाओ यारों।
कौन साथ है!कौन छोड़ गया,ये सोच के ना पछताओ यारों।
जिवन है तो खुशी मिलेगी,दुख भी होगा छोड़ो ये सब बातें,
नव वर्ष का आगाज है,खुशियाँ मनाओ यारों।।
।।नव वर्ष मंगलमय हो।।-
एक मात्र यह पर्व नहीं ये,बहोत कुछ सिखलाता है,
अन्ततः धर्म-विजय होता,ये दिन यहीं बतलाता है।
अधर्मी,हठी,घमंडी को युग पुरूष जब मार गिराता है,
धर्म,अधर्म पर, विजयी हो जब,तब दशहरा आता है।।
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इसमें मेरी गलती नहीं जो तुझे याद आ रहा हूं मैं,
दिल पे बोझ है,पैर थक से गये हैं,फ़िर भी चलता जा रहा हूं मैं।
ये फ़ैसला तेरा था कि छोड़ दो शहर मेरा,चले जाओ,मत आना,
फ़िर लोगों से क्यों कहती फिर रही हो कि तुम्हें सता रहा हूं मैं।।
मसला ये नहीं कि मर जायेंगे हिज़्र में तुमसे रूखसत होके,
मोहब्बत नहीं है तुझसे ऐसा हरगीज़ नहीं,बस बात ये है कि हक़ीकत बता रहा हूं मैं ।।।-
एक हक़ीम को नाज़ था वो हर मर्ज़ की दवा जानता है।
मैंने अपना मर्ज़-ए-इश्क़ बताया उसने हाँथ खड़े कर लिये।।-