Ashish Dubey   (आशीष दुबे)
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Winner of Many Poetry Competition 😊
Joined 10 May 2020


Winner of Many Poetry Competition 😊
Joined 10 May 2020
2 MAY 2022 AT 18:26

सफलता को मेरी, हवा की रवानी बता रहे हैं
लेकिन साथी मेरे मुझको आसमानी बता रहे हैं
हारकर खुद युद्ध में प्रतिद्वंदी मेरे
जीत को मेरी बेइमानी बता रहे हैं

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8 JAN 2022 AT 10:58

रण के मैदानों में सदा तन के खड़े रहना
व्यर्थ पाषाण की तरह मत पड़े रहना

धूप को सहना भी तुम, निशा को जला देना संघर्षों से
आबाद रहना भी तुम, लोहों को गला देना तुम कर्मों से

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19 OCT 2021 AT 0:03

देश की बाहों में, मैं लेटूं गीत अमर हो जाऊं मैं
अधरों पर डालूं डेरा, सदियों तक गाया जाऊं मैं

स्याही की बूंद- बूंद से पन्नो पर छा जाऊं मैं
लिखूं कहानी ऐसी की, भावों में पिरोया जाऊं मैं

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16 OCT 2021 AT 22:33

कलम हमारी बोलेगी, साहित्य चमक उठेगा फिर
वर्षों से तप रहे इतिहास के पन्नो की, अग्नि दहक उठेगी फिर




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15 AUG 2021 AT 18:09

वर्षों से छाया हुआ था जो, वो तिमिर मिटाकर चले गए
आओ नमन कर लें उनको, जो रुधिर बहाकर चले गए

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2 JUL 2021 AT 12:47

लोग कहते हैं मुझसे, कि वाह क्या बात है
मैं कहता हूं उनसे, कि अभी तो बस शुरुआत है

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2 MAY 2021 AT 9:03

इस जीवन की हवा में कितना तरन्नुम है
तुम्हारी हर मुस्कान बड़ी तबस्सुम है

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1 MAY 2021 AT 17:05

खून पसीना बहाकर, रोटी बना रहे हैं वो
बच्चों को कपड़े दिलाते, खुद लंगोटी सिला रहे हैं वो

बच्चों का जीवन है वो, घर का कोहिनूर है
खून पसीना बहाने वाला वो व्यक्ति मजदूर है

आंखों से बहते आंसू की पीड़ा कौन सुनाएगा
मजदूरों का जीवन परिचय तुमको कौन बतायेगा

कांटा चुभा खून को पौछा, रो लिया अकेले में ही
कान्यदान का ध्यान आया, तो पलकों को भिगो लिया अकेले में ही

इस गरीबी से ही उठकर नव आकाश चूम लेंगे
इस पंचर साइकिल से ही, पूरा संसार घूम लेंगे

कांपते हुए हाथों का सहारा तू हारना मत
मेरे बेटे गरीबी कितनी भी हो ,कभी उभारना मत

ए मेरे मजदूर भाईयों, तुम सच्चे इंसान हो
मजदूर नहीं कहूंगा मैं, तुम धरती के भगवान हो




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29 APR 2021 AT 8:44

*पिता एक एहसास*

पिता से ही जीवन की हर आशा है
पिता एक खुशियों की परिभाषा है

सबसे प्यारे हैं पापा, मैं उनका राजदुलारा हुं
पापा साथ रहें तो लगता, मैं ही तो जग सारा हूं

उंगली थामी पापा ने, संसार मुझे दिखलाया है
सत्य के पदचिन्हों पर चलना, पापा ने सिखलाया है

जो जीवन के बीज हमारे अंतर्मन बोता है
अपनी खुशियां बांटने वाला एक पिता ही होता है

कभी ये ऋण तुम्हारा , हम चुका न पाएंगे
साथ जन्मों तक भी हम , तुम्हें भुला न पाएंगे

हमारी हर पूर्ति के लिए, तुमने अपना ख्याल न रखा
हमको रखा खुश हरदम, लेकिन अपना ध्यान न रखा

एक नदी के बहते हुए, नीर का सहारा हो तुम
अगर हम समंदर हैं, तो उसका किनारा हो तुम

तुमने उठाया गोदी में झूला हमें झुलाया है
खट्टा मीठा चुमा लेकर तुमने खूब खिलाया है

ओ पिता बस अंत में बात इतनी कह रहा हूं
कितना भी हो जाऊं बड़ा, मैं चरणों में ही रह रहा हूं



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28 APR 2021 AT 22:18

*नजर का जादू*

ये तेरी नजरें, इनका अजब कमाल है
तू देखे जिसकी ओर, वो तो मालामाल है


जुल्फों को मुखड़े से हटाकर, आओ नजरें मिलाएं हम
इस चांद से मुखड़े को, प्यार सदा निभाएं हम

ये तेरा कैसा काबू है?
लगता नजरों का जादू है

इन नजरों के जाने कितने दीवाने हैं
नजर मिलाई उनसे ही, जो जाने पहचाने है

एक नजर का जादू तो, लाखों भर में फैला है
प्यार निभाना आता है, ये दीवानों का मेला है

चल रहे थे ऐसे जैसे, साफ बिल्कुल राह है
फैला रहा था जादू ऐसे, जैसे कोई अफवाह है

इस अटूट बंधन का, बस एक मात्र सार है
दीवाने रहते यहां, ये प्रेमियों का संसार है

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