Ashish Dhanvijay   (©)
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अच्छा लगता है ज़ज्बातो को शब्दों कि शक्ल देना।
Joined 10 January 2019


अच्छा लगता है ज़ज्बातो को शब्दों कि शक्ल देना।
Joined 10 January 2019
23 JUL 2021 AT 11:52

Lecture भले ही 45 मिनट का हो,
मगर ज्ञान,मार्गदर्शन और प्रेरणा इतनी की,
संघर्ष से भरे जिवन के इस समंदर में
पतवार बनाकर चल सको।

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20 MAR 2021 AT 9:38

बहोत विलक्षणीय होते हैं कुछ एक दृश्य ,
जैसे फागुन के माह में पलाश का खिलना।

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11 AUG 2020 AT 20:04

शायर मरा नही करते खिला करते हैं,
जैसे खिलते हैं बागीचे में फूल।

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11 JUL 2020 AT 21:00

तुम्हारा प्रेम सदैव गणित की तरह रहा
आसान तो था, मगर उलझा रहा।

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15 JUN 2020 AT 10:47

ज़हन में बाते हज़ार थी,
मुस्कुराते तो बोहोत थे लबो से
मगर फूर्क़त कभी न बयाँ की।

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8 JUN 2020 AT 21:54

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4 JUN 2020 AT 19:28

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20 MAY 2020 AT 20:14

सर पर जिम्मेदारी,
पसीने में सना शरीर,
पाओ में लिये छाले,
दर्द ने घेरा हैं
बडी दूर,,से आये हैं साहेब
मत पूछों के क्या हाल हैं।
मौत करीब हैं
और सफ़र हैं लम्बा,
इ कैमरा सर से हटाओं
और बताओ के वो 'बस' कहाँ हैं...
हमें जाना हैं 'गाँव'
हमें 'घर' की आस हैं।

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10 MAY 2020 AT 0:36

बहोत हैं जहाँ में,
इट,रेती,सीमेंट,मिट्टी से
मकां बनाने वाले,

मकां को मगर 'घर' बनाने वाली
फक़त 'माँ' होती हैं।

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29 APR 2020 AT 15:30

मरते तो सभी हैं जहाँ में इक दिन,
किरदार अच्छा हो तो विदाई हसीन होती हैं।

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