ashish chhangani   (Ashish Chhangani)
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Joined 11 December 2018


Joined 11 December 2018
8 NOV 2023 AT 8:40

अब फिर वही आलम वही नजारे होंगे,
दूर जो छोड़ आए किनारा ,उनके यादों के सहारे होंगे,
अब फिर से वही किस्से, वही अखबार पुराने होंगे।

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24 SEP 2023 AT 16:25

तु नहीं,तो ये घर घर नही लगता,
दीवारे तो है चार ,मगर इनमें मेरा दिल नही लगता।
ये दीवाले बोलती बोहोत है,तेरे ना होने का अहसास कराती बोहोत है।
तेरी तस्वीर से बात क्या कर ली चार,
अब हर वक्त बुलाती बोहोत हैं।

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7 JAN 2023 AT 22:41

महफिल में ये जाम कोन लाया,सहर में ये नया चांद कोन लाया।
गुजर रहे थे अंधेरों से पैर कुछ यु हमारे,सामने जलती ये मशाल कोन लाया।
तुझसे रूबरू कुछ इस कदर हुए,मेरे खुदा, सामने ये कोन लाया।

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20 JUN 2022 AT 15:34

मेरे अपनो के हात,हातोसे छुटने लगे है।
उम्मीदों के आसू आंखो से टूटने लगे है।
सफर के इस मोड़ पर यू तन्हा खड़ा रहना होगा कभी सोचा ना था।
पहले कभी अपनो ने हात यू बीच में छोड़ा ना था।

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3 OCT 2021 AT 20:13

चलते सफर में नजाने क्यूं,थकने लगा हुं।
मानो जैसे इच्छा से विपरीत बढ़ने लगा हुं।
टहनी पर झूलता वो एक आखरी पत्ता,
हर गुजरती हवा के साथ,डरने लगा हुं।

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4 AUG 2021 AT 19:35

ढलती शाम की बाहों में बरसती तेरी ये यादों की बूंदे,चेहरे पर बरसती क्यूं नही।
गुजरते बदलोसी गुजरती ये हवा,कानो में कुछ कहती क्यों नही।
घर को रुख करते ये परिंदे,तेरे खैरियत की जुस्तजू करते क्यूं नही।
ये जो तू हर वक्त सिर्फ खयालों में है,हकीकत में मुझसे रूबरू होती क्यूं नही।

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3 JUN 2021 AT 20:28

ये श्याम यू ही ढलती रही।
तेरे इंतजार में ये जाम हलक से यू ही उतरती रही।
हर घुट के साथ बढ़ती तेरी ये याद, हातो का जाम आंखे नम करती रही।

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12 MAY 2021 AT 20:34

अपनी बढ़ती,बदलती करवटो का कसुरवार ख़ुद को मान चुका हूं।
लड़खड़ाते रिश्तों कि बढ़ती मंजिलों से अब्ब हार चुका हूं।

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15 MAR 2021 AT 14:47

हर शक्श पर भरोसा जताया तो नहीं जाता
हर रूठे शक्श को मनाया तो नहीं जाता ,
कुछ तो ख़ास बात होंगी तेरे मेरे रिश्ते की,
हर शक्श को तो ज़िन्दगी का हमसफर बनाया नहीं जाता।

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18 FEB 2021 AT 12:51

ये ज़िंदगी बस अब्ब यही ग़ौर करने में गुजार रहे है हम,
कौन क्या कहेंगा,कौन क्या सोचेंगा इसी पर लड़ रहे है हम।
अपनों की खुशियों का गला ख़ुद घोट कर,लोगो के सोच के सहारे ज़िंदगी जी रहे हम।
क्यू अपने ही फैसलों से डगमगा रही अपनी ये ज़िन्दगी,अपनी ही खुशियां,किश्तों में तोल रहे हम।
आखिर क्यू लोगो के सोच के सहारे अपनी ज़िन्दगी जी रहे हम।

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