श्रेय नहीं कुछ मेरा,
मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में
वीणा के माध्यम से अपने को मैंने,
सब कुछ सौंप दिया था -
सुना आपने जो वह मेरा नहीं,
न वीणा का था ,
वह तो सब कुछ की तथता थी
महाशून्य
वह महामौन
अविभाज्य, अनाप्त, अद्रवित, अप्रमेय,
जो शब्दहीन,
सब में गाता है।
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