Ashfak khan   (Ashfak खान)
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मैं कोई लेखक या शायर नहीं, बस मेरी कलम को कोरे कागजों सें इश्क़ हैं..... 📄🖋️
Joined 18 August 2019


मैं कोई लेखक या शायर नहीं, बस मेरी कलम को कोरे कागजों सें इश्क़ हैं..... 📄🖋️
Joined 18 August 2019
16 MAY 2021 AT 10:59

कुछ कोरे काग़ज़ों पर मेरी कलम ने, ज़ुल्म किए हैं
अब वो कागजे, इन्साफ़ की गुहार लगा रहीं हैं!

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9 MAY 2021 AT 0:11

माफ़ करना बहुत जरूरी है खुद को, और दूसरे को भी, जिन्होने आपको किसी कारण, या किसी प्रकार से छला है, या आपका इस्तेमाल किया है,
माफ़ करना जरूरी है, खुद में छुपे उस "मैं" को जो ना जाने कब से उस ग्लानि रूपी पहाड़ को ढ़ोता हुआ, अवसाद ग्रस्त चल आ रहा है!
माफ़ करना शायद इतना आसान न हों लेकिन अंततः हमे माफ़ कर देना चाहिए "खुद" को और हर किसी को! लेकिन एक भूत-प्रेत सा प्रश्‍न हमेश परछाईं की तरह मुझसे चिपका रहता हैं,
"क्या हम कभी अपने उन सारे गुनाहों को स्वीकार कर पाएंगे...??
जो कभी हमने खुद के साथ और अपनों के साथ किए हैं..?" मुझे लगता हैं की, माफ़ करने की कला को सीखने के लिए, अभी बहुत वक़्त हैं हमे!

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8 MAY 2021 AT 5:33

अपने जिये हुए को लिखना, फिर उसे पढ़ना, उसे दोबारा से जीने का सुख 🍁 🍁 रत्तीभर भार का ही तो हैं, जैसे पतझड़ में पत्तों का गिरना और बसंत में वापस आ जाना, सूरज का आना, चांद और तारों का गुम हो जाना, कैटरपिलर से तितली तक का संघर्ष, बचपन का जवानी के पुल को लाँघते हुए बुढ़ापे तक का जीवन,
शव (मृत शरीर) का श्मशान तक का सफर बस रत्तीभर का तो हैं,
"ये क्षणभंगुर सा जीवन"

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2 MAY 2021 AT 13:20

"कि तू पर्वतो सा"अडिग"है,
सूर्य सा तेज "संकल्प"लिए |
भूत को परास्ते,
भविष्य की ओर अग्रसर,
लिए मशाल "जीत" का,
अंधकार को चीरता,
कि रुका नहीं, थक नहीं,
कि तू पर्वतो सा"अडिग" हैं ||
कि संघर्ष के रथ में तू सारथी है खुद का,
कि माँग ना तू पनाह किसी से ईश्वर के वास्ते,
ना टूटने दे मनोबल,
तू ज्वाला सा धधक,
तू पर्वतो सा "अडिग" हैं,
सूर्य सा तेज "संकल्प"लिए |||

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19 APR 2021 AT 1:02

"माँ के साथ संवाद"

बड़े दिनों बाद माँ से एक लम्बे समय तक बातचीत हुई, वो थोड़ी-थोड़ी देर में मुझसे पूछती कैसा है तू.? खाना पीना तो सही है ना, तुझे कोई दिक्कत तो नहीं हैं ना..?? ठंड बहुत बढ़ गई हैं, अपना जैकेट पहना कर, और छत पर अकेल देर रात तक मत टहला कर, पानी ऊबल कर पिया कर, इन सारी बातचीत के दौरान, मैं उनका यहाँ होना महसूस कर रहा था, मानो वो मेरे सामने खड़ी ये सारी बातें मुझसे कह रही हो, मेरे खाँसने की आवाज सुनकर वो कहने लगी, ‌मुझसे :- "तुझे खाँसी कब से है...??" तेरी तबीयत तो ठीक हैं ना.? कहीं तूने फिर से सिगरेट पीना शुरू तो नहीं कर दिया ....??? माँओ को सारी बातों का पता कैसे चल जाता है, ये ना मैं पहले कभी समझा पाया ना ही अब, मुझे लगता है कि माँओ को समझाना ऐसा है, जैसे एक ही रात में आकाशगंगा के तरो को गिनना! अपने सिगरेट पीने वाली बात को छुपने के लिए मैंने अपनी तीव्र अवाज़ का सहारा लिया, माँ कुछ सहेम सी गई, और अपनी करुणा-भरी आवाज़ में बोली की तेरी परवाह करती हूँ, मेरे लाल!
पर ये बताने से मैं डरती हूँ, कि कहीं तू रूठ ना जाए,
जिस दिन तुझ पे आएगी ना, तब तू मुझे याद करेगा, कि सही कहती थी "मेरी माँ"
माँ के साथ हुए इस संवाद के बारे में सोचते हुए, मैं कही दूर आकाशगंगा में अपने आप को गुम होता हुआ पता हूँ!
(अम्मा के लिए)

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15 APR 2021 AT 22:49

"कस्तूरी-मृग"

मैं तुम्हें लिखना चाहता हूँ, तुम्हारी उपस्थिति को दर्ज़ करना चाहत हूँ, इसकी भनक पाते ही तुम्हारे गर्दन के ठीक बगल वाला तिल मुझ पर हंसने लगता हैं, जैसे उसने मेरा लेखक होना बहुत दूर से सूँघ लिया हो,
अपने आप को अपने से अलग करने की प्रक्रिया में,
मैं हमेश विफल हो जाता हूँ,
क्या लेखक को उसके लेखक होने से अगल किया जा सकता है..??
हम हमेशा अपनी खोज में अपने आप से भागते रहते हैं, बिल्कुल कस्तूरी मृग की तरह.........

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15 APR 2021 AT 0:57

मुझे सपने आते हैं, किसी दूसरी दुनिया के, लेकिन मैं उन्हें लिख नहीं सकता, क्योंकि अगर मैंने उन्हें लिखना शुरू कर दिया तो मैं उसे जी नहीं पाउंगा, जो घट रहा है, इस वक़्त ये पीड़ा हैं, दूसरे दुनिया की पीड़ा का भार मैं इस दुनिया में नहीं उठा सकता हूँ,
इसे आप मेरी कायरता कह सकते हैं!
ये सब ऐसा हैं जैसे किसी अपने मरे हुए कि यादो का बोझ इस दुनिया में ढोना!

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14 MAR 2021 AT 0:05

I'm ambitious about good life I don't consider myself to be over ambitious......

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2 AUG 2020 AT 11:14

"गुरु जैसा पिता, भाई जैसा दोस्त, और प्रेरणा जैसी प्रेमिका हर किसी के भाग्य मैं नहीं होतीं! "

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29 JUL 2020 AT 23:40

"कहानी की विषय वस्तु और रूप-रेखा में कभी मत पड़ना नहीं तो तुम कभी भी वो कहानी नहीं लिख पाओगे जो तुम्हारे भीतर पल रही हैं! "

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