उसके नजदीक गम-ए-तर्क-ए-वफ़ा कुछ भी नहीं,
मुत्मईन ऐसे है वो जैसे हुआ कुछ भी नहीं...
अब तो हाथों की लकीरें भी मिटी जाती है,
उसको खो कर तो मेरे पास रहा कुछ भी नहीं...
मैं तो इस वास्ते चुप हूं कि तमाशा ना बने,
तू समझता है मुझे तुझसे गिला कुछ भी नहीं...
- N. F. A. K.
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