"माँ"
उसकी जुबां से जो भी निकले
सब वैसा हो जाता है,
वो बस अच्छा कहती है और
सब अच्छा हो जाता है।-
कितना भी लिख लो मां के लिए फिर भी कम है,
सच तो ये है कि मां है तभी हम हैं।
"Maa"-
उनकी सोहबत में गए संभले और दोबारा टूटे,
हम एक ही शख्स को दे-दे कर सहारा टूटे।
ये अजब रस्म है प्यार की हमें बिल्कुल ना समझ आई,
प्यार भी हम ही करें और दिल भी हमारा टूटे।-
मेरे दिल को जलाने की जरूरत क्या थी,
मुझे यूं तड़पाने की जरूरत क्या थी।
इश्क नहीं था तो साफ-साफ कह देती,
अपनी औकात दिखाने की जरूरत क्या थी।-
कुछ बोले तो लहजा समझूं ,
खामोशी को मैं क्या समझूं।
तुम भी कच्चे मै भी कच्चा,
तो फिर रिश्ता पक्का समझूं-
जिस दिन उठ जाएगा मन इस दुनिया से,
उस दिन ये खूबसूरती तुम्हें सोना नहीं लगेगा।
और जिस दिन बन जाओगी किसी बेटे की मां,
उस दिन ये लड़का तुम्हें खिलौना नहीं लगेगा।-
ठेले पर लगा ये सेब केला कौन देखेगा?
तुम्हे गर हम नहीं देखें तो बोलो कौन देखेगा?
जो इतना सज-संवर कर जाओगी तुम आज मेले में,
तुम्हे ही सब वहां देखेंगे मेला कौन देखेगा?-
दुख दर्द मुसीबत सब जगह तुम मेरे साथ हो,
मगर फिर भी लगता है तुम एक अंधेरी सी रात हो।
क्या तुम मेरी रात का उजाला बनोगी?
दो कदम दूर ही सही मगर मेरे साथ तो चलोगी।
तुम साथ चलोगी तो मुझे एहसास भी होगा ,
और एक दिन ये सपना सच में आभास भी होगा।
सपना और सच को छोड़कर मैं अब ये बात चाहता हूं,
बहुत दिन हो गए तुमसे दूर रहते रहते हैं बस अब तुम्हारा साथ चाहता हूं।-
तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते
इसीलिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आते
मुहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है
ये रूठ जाएं तो फिर लौटकर नहीं आते
जिन्हें सलीक़ा है तहज़ीब-ए-ग़म समझने का
उन्हीं के रोने में आंसू नज़र नहीं आते
ख़ुशी की आंख में आंसू की भी जगह रखना
बुरे ज़माने कभी पूछकर नहीं आते-
जिस शख्स को देखकर तुम जीते हो,
खुद उसको बुरा कह देते हो।
शायद तुम्हें याद नहीं रहता,
तुम पीकर उसे क्या-क्या कह देते हो।।-