जब भी तुम्हें तन्हा देखा,
हमेशा खुद को अकेला पाती थी।
चोट तुम्हारे दिल को जब लगी थी,
दर्द को मैं भी महसूस कर पाती थी।
मैने तुम्हारी तकलीफ तो समझी,
पर शायद तुम्हारी खुशी न समझ सकी।
क्योंकि मुझे छोड़ कर किसी और का हाथ थामना,
मजबूरी नहीं, मर्जी तुम्हारी थी।
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