Asad Azam   (Asad_Poetry_25)
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Joined 28 January 2020


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Joined 28 January 2020
11 AUG AT 9:57

हम शेर-ए-मोहब्बत थोड़ा जुनून से लिखते हैं..
अल्फाज़-ए-बेवफ़ाई को सुकून से लिखते हैं.!!

कि हम खो जाते हैं पुराने खयालात में ऐसे 'असद'..
कलम टूट जाए तो हम अपने खून से लिखते हैं.!!

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10 JUL AT 5:53

टूट कर बिखर गया हूँ, मगर आवाज़ नहीं की,
दर्द की इन ईंटों से, कोई साज़ नहीं की।

हर ख्वाब के मलबे में, दफ़्न हैं कुछ जज़्बात,
पर किसी से भी इनकी, आज तक बात नहीं की।

काँच सा ये दिल था, बड़ी सफ़ाई से टूटा,
जिसने तोड़ा, उसने भी मुझसे मुलाक़ात नहीं की।

जिनसे उम्मीद थी मरहम की, वो ज़हर दे गए,
और मैंने भी शिकवा करने की शुरुआत नहीं की।

आईना रोज़ कहता है, "तू पहले जैसा नहीं,"
मैं हँस कर कह देता हूँ — मैंने बग़ावत नहीं की।

हर मोड़ पर टूटा हूँ, हर साँस में तन्हा हूँ,
फिर भी ज़िंदगी से कोई शिकायत नहीं की।

छांव मांगी थी बस थोड़ी, धूप नसीब हो गई,
फिर भी किसी साये की हिमायत नहीं की।

अब तो ग़म भी अपने लगते हैं, और दर्द भी रिश्ते,
इस हाल में भी 'असद' मोहब्बत से अदावत नहीं की।

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6 JUL AT 19:41

इश्क़ की गलियों से उम्र गुज़ारकर लौटे हैं,
ज़ख़्म सीने में चुपचाप सवार कर लौटे हैं।

हर सवाल में उलझे, हर जवाब से डरते,
हम हँसी को भी आँखों में मार कर लौटे हैं।

वो जो ख़्वाब थे कल तक,अब धुआँ-धुआँ से हैं,
हम चिराग़ दिल के भी बुझार कर लौटे हैं।

तेरे नाम की खुशबू अब भी साथ चलती है,
हम तन्हाई को भी दास्ताँ कर लौटे हैं।

लोग कहते हैं क्यों इस क़दर उदास हो तुम
क्या बताएँ, हम सब कुछ हार कर लौटे हैं।

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28 JUN AT 1:12

हुस्न का जलवा दिखा कर चल दिए
धड़कने दिल की बढ़ा कर चल दिए

मुश्किलें आयीं थी रास्ता रोकने
हम उन्हें ठेंगा दिखा कर चल दिए

दुख कहाँ था बाँटना रस्मन फ़क़त
लोग हमदर्दी जता कर चल दिए

आप से ही आस दिल को थी फ़क़त
आप भी नज़रें चुरा कर चल दिए

था लिखा "असद" जहां में जितना भी
वक़्त हम उतना बिता कर चल दिए

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6 JUN AT 9:02

चलें हम क्यों भला इतने अकड़कर।
सभी को मौत ले जाती जकड़कर!!

सियासत प्रेम से रहने न देगी।
मिलेगा क्या हमें सबसे झगड़कर!!

तेरी तस्वीर है तुमसे भी अच्छी।
गिरूंगा मैं तो रखेगी पकड़कर!!

न करना चाहिए था जो किया है।
नतीजा, जा चुके कितने उजड़कर!!

अगर जाना है जाओ पर बताओ
रहेंगे हम कहां तुमसे बिछड़कर!!

मना लेंगे उन्हें देकर खिलौना।
गुज़ारा हो नहीं सकता है लड़कर!!

कहां मुश्किल बुलंदी पर पहुँचना।
कठिन टिकना मगर चोटी पे चढ़कर!!

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4 JUN AT 17:16

एक आप ही नहीं ज़िंदगी गुज़ार आए हैं
हां आपसे पहले भी, कई हज़ार आए हैं

दिखाना ही है तो कुछ,क़ीमती दिखाओ
हम बहुत दिनों के बाद, बाज़ार आए हैं

किसी ने बता दिया की आज खुश हूं मैं
मेरे घर सारे शहर के,ख़रीददार आए हैं

जो सुना रहे हो,मोहब्बत के किस्से तुम
ये दौर मेरी कहानी में, कई बार आए हैं

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2 JUN AT 10:28

पांच साल तक साथ में सपने सजाए,
तेरे वादों पे हमने जहाँ तक बनाए।

हर खुशी तुझसे जोड़ के रख दी थी,
तेरी हँसी में ही खुद को छुपाए।

रातें जागी तेरी बातों की खातिर,
ख़ुद को हर रोज़ तुझमें ही पाए।

पर अब तू कहती है 'घर की इज़्ज़त',
क्या मेरा प्यार तुझे शर्मिंदा बनाए?

तेरे आँचल में मेरा भरोसा था,
क्या वो अब तेरे लिए एक सज़ा बन जाए?

जिसने तुझसे मोहब्बत को खुदा जाना,
उस दिल को अब तन्हाई क्यूँ सताए?

तेरे ख्वाबों में जो दुनिया बसाई थी,
क्यों वो अब खंडहर सा दिखाई दे जाए?

तूने जिस रोज़ "ना" कहा था मुझे,
वो दिन हर रोज़ मेरी रूह को जलाए।— % &— % &

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31 MAY AT 16:24

Thanx a lot

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31 MAY AT 16:23

Thanx a lot

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30 MAY AT 17:30

मैं आऊंगा हर बात लेके आऊंगा
जो लगाए थे तूने वो सारे इल्ज़ाम लेके आऊंगा

तूने तो खोले हैं कुछ पन्ने ही मेरे किरदार के
मैं तेरी जिंदगी की पूरी किताब लेके आऊंगा

तूने कहा था कि तुझे बस दिल्लगी है मुझसे
मैं तेरे संग बिताई हर शाम लेके आऊंगा

सपनों की दुनिया तूने ही दिखाई थी मुझे
मैं बिखरे हुए सारे वो ख्वाब लेके आऊंगा

पूछा था तुने अब बचा क्या इस रिश्ते में
मैं किताब से टूटा हुआ गुलाब लेके आऊंगा

जानता हूं सवालों से घेरेगा ज़ालिम जमाना मुझे
मैं एक एक सवाल का जवाब लेके आऊंगा

दुनिया को ना बता कितने दर्द दिए हैं मैंने
मैं तेरे जुल्मों की पूरी दास्तां लेके आऊंगा

तूने तो किसी ओर के साथ उड़ना सीख लिया
मैं अपने टूटे हुए पंखों का हिसाब लेके आऊंगा

बहुत कर दी तूने दुनिया में मेरी बदनामी 'असद'
मैं वक्त के साथ बदली तेरी औकात लेके आऊंगा

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