*बड़ी तबीयत से उछालते हैं वो सिक्के रुसवाई के।।।
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नासमझ मैं तनहा रातों में रौशनी पे ऐतबार किए जा रहा ।।।*-
मुझे समझने के लिए दिमाग नहीं दिल की आवश्यकता है... read more
कौन कहता है ज़माना साथ न देता ,,
जरा तबियत से शोहरत का सिक्का उछालो तो सही,,,
जिंदगी खुद तुम्हें आजमाकर तुम्हारी होने पे मजबूर हो जाएगी,,
बस एकबार जीत की चाहत नहीं ज़िद पालो तो सही।।।-
सुना है गुलज़ार करता है वो रहनुमा बनकर हर किसी का आशियाना,,
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बस फक़त मेरा ही रकीब शायद उसे परदे में दिखा ।।
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संगदिल ही तो है ये जमाना अभी जो मुरव्वत को मोहब्बत का फसाना बताता,,
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वरना कभी आंखों में आसूं की जगह निगाहों का खून थोड़ी होता ।।-
सुना है वो अपनी रहमत से गुलजार करता है फिजाओं को,,
जो बन जाता है पत्थर उन्हें परवार करता है मोहब्बत की वफाओं को,,
मैंने भी तो तुम्हें माना है उसी खुदा की रहमत का आईना,,
अब तुम ही बताओ कोई कैसे करता प्यार बेइंतहा यूं मुफलिसी अदाओं को।।।-
विषाक्त हूं सशक्त कैसे बन जाऊं,,
आशक्त हूं विरक्त कैसे बन जाऊं,,
हो जाती हैं परिस्थितियां यदा कदा विपरीत,,
पथिक हूं मार्ग का विभक्त कैसे बन जाऊं।।।
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रंगों में रंग भरके भी अपनी रंगत न छोड़े जो ऐसा विचार बनो,,
व्याधि को जो व्याघ्र बना दे ऐसा तीव्र तीक्ष्ण प्रहार बनो,,
जैसे वर्षा की बूंदों में भी सूर्य को एक नवीन आयाम देता है वो इंद्रधनुष,,
ऐसे ही प्रत्येक कलुषित भावों में चमक उठे स्वयं का व्यक्तित्व ऐसा ही व्यवहार बनो।।।-
व्यथित न हो पथिक तुम अपनी हार से,,
करो प्रत्येक शिला का मर्दन अपने दृढ़ प्रहार से,,
अचल भी चल में परिवर्तित हो जाए ऐसा निर्माण करो अपने व्यवहार से,,
कि निर्वाण स्वयं तुम्हें निर्माण दे बस तुम्हारे उत्तम विचार से।।।
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वो अर्ध नग्न दिखते हम पूर्ण नग्न हो जाते,,
वो भोर पहर की ज्वाला में , हम भरी दोपहरी चिल्लाते ।।
करके नाद धर्म भावों का,, हम स्वप्नों की ज्वाला भड़काते।।।
कह दो फिर से वो रावण का है वंशज , जो मां सीता को भरे मंच पर हैं नचवाते।।।-
आंखों में आसूं देने की ये रिवायत कैसी,,
हर तरफ खून बहाने की ये इनायत कैसी,,
कहते हो जान से भी प्यारा है वो मुझे,,
फिर उसी जान की जान लेने की ये इबादत कैसी।।-