अब चलता हूं मैं, घर जल्दी पहुंचना है,
कुछ खास नहीं, बस काफी दिन से सो नहीं पाया हूं,
कुछ भारी सा है मन में, बहाना चाहता हूं उसे,
कोई बहाना नहीं है, बस काफी दिन से रो नहीं पाया हूं।-
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साहब हम भी टूटते हैं,
जबरदस्त टूटते हैं,
कई बार टूटते हैं,
बस हम भीड़ को ज़ाहिर नहीं करते।-
ज़िंदगी का दस्तूर यही है ग़ाफ़िल
आज साथ हैं हम
कल जुदा होंगे
फिर कहीं टकराएंगे
फिर बहुत दूर हो जाएंगे
साथ रहने की बातें बस बातें हैं
एक बिखरा सपना, एक झूठा वादा।-
सांसों को बांध चल पड़े जो लेके हाथ में मशाल
भूल जा तू कौन है, नाता है क्या किसी के साथ
अब आ ही गए तो बता दूं की आसां नहीं ये इंकलाब
मौत भी मिलती है तो हज़ार मौत मरने के बाद।-
जो हक़ तेरा मुझपर है वो पूरा है,
मेरे नाम पर,
मेरी किस्मत पर,
मेरी रूह पर,
हमारे सफर का कोई अंत
सोचा ही नहीं था मैंने,
जैसे तूने सोचा था
बस एक सुबह की अंगड़ाई
और बिस्तर की चंद सिलवटों तक.-
तुम पर इतना हक़ नहीं
की तुम्हें अपने आंसुओं से जोड़ लूं,
हां मोहब्बत ज़रूर इतनी है
की तुम चाहो तो तुम्हे खूबसूरत लिबास सा ओढ़ लूं।-
अक्सर यहां आकर
लोग ठहर जाते हैं,
मेरे जैसे भी हैं कुछ,
जो खुद से मिल जाते हैं।-
चोट कहां रोकेगी तुझको
तू तो भारत का सिपाही है,
पर्वत को बाज़ुओं से तोड़ा तूने
तब जाके ये शोहरत पाई है।
मनुष्य-
हज़ारों साहब डूबे थे इन रंगरलियों में,
बदनाम केवल वो शराब हुई
कितने ही गुज़रें होंगे उन गलियों से,
पर एक कमरे में बैठी वो बदनाम हुई
अरे हज़ारों शामें कुर्बान है उसकी आंखों पर
जिससे हसीन मेरी हर शाम हुई।-