मैं कसीदे लिखता हूं
सब मोहब्बत पढ़ते हैं-
रोज़ नये-2 किरदार सिखता हूं
अंधेरे में रोशनी की तालाश करते हैं,,
इतना डर है कि हर मौके पर बिखरते हैं
और ये मौत तो सबसे बड़ा सच है,
इंसानो का,,आनी तो सबको है
फिर भी उसके नाम से भी डरते हैं
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वो शरारत के पल,वो हंसती हुई शाम
अपनी दोस्ती भी है एक दुसरे के नाम
वो साथ में खाना, वो साथ में रहना
वो साथ में हंसना, वो साथ में रोना
एक कमरे में बीती है जिन्दगी
एक दुसरे में रहती थी बंदगी
याद आते हैं पुराने वो पल
क्या कभी आएगा ये बिता हुआ कल
दुश्मन भी देख कर पिघल जाते थे
सैर पर जब हम एक साथ निकल जाते थे
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कभी हिस्सा रहे एक दुसरे का
कभी दो दिल एक जान बन गए
फिर कुछ नाराज़गी बड़ी दोनों में
पता न चला कब अनजान बन गए
ऐ दोस्त बात कर मुझसे पहले की तरह
ऐसे नजरअंदाज न कर जैसे मेहमान बन गए
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पहली मर्तबा में क्या खूब लगी तुम
चांद की रोशनी,नूर की महबूब लगी तुम
पेशा मेरा शराफ़त का यूंही बिखर गया
बेशर्मी से देखा तो खुदा-ए-रूप लगीं तुम
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रास्ते सब नए है, मंजिल पुरानी तय है
गिरना,लड़ना, संभलना लाजमी है जंग-ए-मंजिल में
इन सब से थोड़ा भी नहीं भय है
हमने ठाना हैं पिछे न हटाने का रुतबा
हम भी खास है, हमारी भी जवान लय है
दुशमन-ए-बाजुए कीं दहशत जितनी भी हो
आजमायेंगा हमें भी, हम भी प्रलय है
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